Book Title: Itihas lekhan ki Bharatiya Avadharna
Author(s): Asim Mishra
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
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महेश्वरसूर
अभयदेवसूरि (वि.सं. 1383-1409) प्रतिमा लेख
- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासप्रथम (वि.सं. 1345-1361) प्रतिमा लेख कालकाचार्यकथा के रचनाकार
आमसूरि (वि.सं. 1435) प्रतिमालेख
शांतिसूरि (वि.सं. 1453-1458) प्रतिमालेख
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यशोदेवसूरि (वि.सं. 1476-1513) प्रतिमालेख
नन्नसूरि (वि.सं. 1528-1530) प्रतिमालेख
। (वि.सं. 1544 में सीमंधर जिनस्तवन के रचनाकार)
( कालकाचार्य कथा की वि.सं. 1365/ ई. स. 1309 में लिखी गई प्रति वि.स. 1378/ ई. स. 1322 में इन्हें समर्पित की गई )
उद्योतनसूरि (वि.सं. 1533-1556) प्रतिमालेख
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महेश्वरसूरि (वि.सं. 1575-1593) प्रतिमालेख
| (वि.सं. 1573 में विचारसारप्रकरण के रचनाकार)
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अजितदेवसूरि (पिंडविशुद्दिदीपिका, अभयदेवसूरि (साक्ष्य अनुपलब्ध)
कल्पसिद्धान्तदीपिका आदि के कर्ता)
हीराचंद (चौबोलीचौपाई के कर्ता ) आमसूरि (वि.सं. 1624) प्रतिमालेख
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यशोदेवसूरि (वि.सं. 1667-1681) प्रतिमालेख
जहाँ तक पल्लीवाल गच्छ की उक्त दोनों पट्टावलियों के विवरणों की प्रामाणिकता का प्रश्न है, उसमें प्रथम पट्टावली का यह कथन कि महेश्वरसूरि की शिष्यसंतति पल्लीवालगच्छीय कहलाई, सत्य के निकट प्रतीत होता है। चूँकि इस पट्टावली के अनुसार वि.सं. १९४५ में उनका निधन हुआ, अतः यह निश्चित है कि उक्त तिथि के पूर्व ही यह गच्छ अस्तित्व में आ चुका था । यद्यपि इस पट्टावली में उल्लिखित अनेक बातों का किन्हीं भी अन्य साक्ष्यों से समर्थन नहीं होता, अतः उन्हें स्वीकार कर पाना कठिन है, फिर भी इसमें पल्लीवालगच्छ के उत्पत्ति संबंधी साक्ष्य उपलब्ध होने के कारण इसे महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
शांतिसूरि (साक्ष्य अनुपलब्ध)
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जहां तक दूसरी पट्टावली की प्रामाणिकता की बात है, इसमें यशोदेव -- ननसूरि-- उद्योतनसूरि-- महेश्वरसूरि-अभयदेवसूरि-- आमसूरि-- शांतिसूरि-- इन पट्टधर आचार्योंके नामों की पुनरावृत्ति दर्शाई गई है। जैसा कि हम पीछे देख चुके हैं, साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से इसका समर्थन होता है । इस प्रकार इस पट्टावली में दिए गए पट्टधर आचार्यों के नाम और उनके पट्टक्रम की प्रामाणिकता प्रायः सिद्ध हो जाती है, किन्तु इसमें ५७ वें पट्टधर आमसूरि, ५८वें पट्टधर शांतिसूरि और ५९ वें पट्टधर यशोदेवसूरि से संबद्ध तिथियों को छोड़कर प्रायः सभी तिथियां मात्र अनुमान के आधार पर कल्पित होने के कारण अभिलेखीय या अन्य साहित्यिक साक्ष्यों से उनका समर्थन नहीं होता तथापि पल्लीवाल गच्छ से संबद्ध आचार्यों का प्रामाणिक पट्टक्रम प्रस्तुत करने के कारण इसकी महत्ता निर्विवाद है। इस पट्टावली में ४१वें पट्टधर महेश्वरसूरि का निधन वि.सं. ११५० में बतलाया गया है। प्रथम पट्टावली में भी वि.सं. १९४५ में महेश्वरसूरि के निधन की बात कही गई है और उन्हें पल्लीवालगच्छ का प्रवर्तक बताया गया है। दोनों पट्टावलियों द्वारा महेश्वरसूरि को समसामयिक सिद्ध करने से यह अनुमान ठीक लगता है कि महेश्वरसूरि इस गच्छ के प्रतिष्ठापक रहे होंगे।
मुनि कांतिसागर के अनुसार प्रद्योतनसूरि के शिष्य इन्द्रदेव से विक्रम संवत् की १२वीं शती में यह गच्छ अस्तित्व में आया, किन्तु उनके इस कथन का आधार क्या है, ज्ञात नहीं होता ।
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उपकेशगच्छ से निष्पन्न कोरंटगच्छ में हर तीसरे आचार्य का नाम नन्नसूरि मिलता है, इससे यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि पल्लीवालगच्छ भी उक्त गच्छों में से किसी एक गच्छ से उद्भूत हुआ होगा । इस गच्छ से संबद्ध १६वीं शती की ग्रन्थ- प्रशस्तियों में इसे कोटिकगण और चंद्रकुल से निष्पन्न बताया गया है, परंतु इस गच्छ में पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति को देखते हुए इसे चैत्यवासी गच्छ मानना उचित प्रतीत होता है। वस्तुतः यह गच्छ सुविहितमर्गीय था या चैत्यवासी, इसके आदिम आचार्य कौन थे, यह कब और क्यों अस्तित्व में आया साक्ष्यों के अभाव में ये सभी प्रश्न अभी अनुत्तरित ही रह जाते हैं।
सन्दर्भ
१. मुनि जिनविजय, संपा. विविधगच्छीयपट्टावली संग्रह, सिंधी जैन ग्रंथमाला, ग्रन्थांक ५३, मुंबई १९६१ ई.स., पृष्ठ ७२-७६
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