Book Title: Itihas Me Bhagwan Mahavir ka Sthan Author(s): Jay Bhagwan Publisher: A V Jain Mission View full book textPage 7
________________ रही हैं कि जैनधर्म भारस के मूलवासी द्रविड़ लोगों का धर्म है'। और महावीर से भी पहिले इस धर्म के प्रचारक ऋषभदेव आदि २३ तीर्थ कर और हो चुके हैं । इनमें से अरिष्टनेमि और पार्श्वनाथ तो आज बहुत अंशों में ऐतिहासिक व्यक्ति भी सिद्ध हो चुके हैं। श्रमण-संस्कृति सदा ही जीवन-विकास के लिये सात तत्वोंको मुख्यता देती रही है-आत्मविश्वास, मानसिक उदारता, संयम अनासत्कि अहिंसा, पवित्रता और समता । भगवान महावीर ने इन्हें ही साधन-द्वारा अपने जीवन में उतारा था और इन्ही की सबको शिक्षादीक्षा दी थी। यही सात अध्यात्मिक तत्व प्राज जैन दार्शमिकोंकी बौद्धिक परिभाषा में जीव, अजीव, पास्त्रब, बौंध, संवर, निजरा और मोक्ष के नाम से प्रसिद्ध वर्णव्यवस्था और मानवता भगवान ने सामाजिक क्षेत्र में जन्म के आधार पर बने हुए मानवी भेद-भावोंका घोर विरोध किया। उन्हों ने बताया कि जन्म की अपेक्षा सभी मनुष्य समान हैं । सभी एक जाति के हैं, क्योंकि सब ही एक समान गर्भ में रहते हैं, एक समान ही पैदा होते हैं। सबके शरीर और अंगोपाङ्ग भी एक समान हैं, किन्हीं दो बणों के समागमसे मनुष्य ही उत्पन्न होता है। इसलिए मनुष्यों में जन्म की अपेक्षा विभिन्न जातियों की कल्पना करना कुदरती नियम के खिलाफ हैं। जन्म से कोई भी ब्राह्मण. क्षत्रिय, शिल्पी और चोर नहीं होते वे सब अपने कम, स्वभाव और गुणोंसे ही ऐसे होते हैं। मनुष्यों में श्रेष्ठता और नीचता उनके अपने प्राचार विचार पर ही निर्भर हैं। जो लोग कुल, गोत्र वर्ण अदि लोक व्यवहृत संज्ञाओं के अभिमानो को छोड़े बिना मनुष्य न अपना हित कर सकता है, न दूसरों का । देवतावाद और अध्यात्मवाद धम क्षेत्र में तो यहां की आम जनता पुरानी रूढ़ियों को अनुयायी होने से अजीब अन्धविश्रासों पीर मूढ प्रथाओं में फंसी हुई थी। अनार्य . 1/- (अ) Prof. Belvalkar--Brahma Sutra P. 107.Page Navigation
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