Book Title: Itihas Me Bhagwan Mahavir ka Sthan
Author(s): Jay Bhagwan
Publisher: A V Jain Mission

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Page 17
________________ ( १५ ) , संकेत करके कहते कि वह स्वयं ईश्वर का साक्षात् रूप है, जो उसे देखते और जानते हैं वे ईश्वर को देखते और जानते हैं " चूंकि बह और ईश्वर दोनों एक हैं । वह अपने उपदेशों में पुनर्जन्म और अमर जीवन के सिद्धान्तों पर भी काफी प्रकाश डाला करते थे । वह कहा करते थे कि यह मेरा पहला जन्म नहीं है, मैं अबसे पहिले भी मौजूद था - हजरत अब्राहमके समयमें भी मौजूद था। जो जीवनको अमरता और पुनर्जन्म में यकीन करेगा वह कभी नहीं मरेगा। बिना पुनर्जन्मके सिद्धान्तों को माने दिव्य साम्राज्य की भी प्राप्ति नहीं हो सकती' | दिव्य साम्राज्य (Kingdom of heaven ) से उनको मुरादा जीवन की उस अवस्थासे थी जब मनुष्य अपनी समस्त इच्छाओं वासनाओं, कषायों को विजय करके अपना स्वामी हो जाता है, जन्म-मरण के सिलसिले को खतम करके अक्षय सुख और मृतका मालिक हो जाता है । ये उक्त सिद्धान्त फिलिस्तीन में बसने वाली यहूदी जातिकी प्रचलित मान्यताओं से बिल्कुल विभिन्न थे, यहूदी लोग इनके प्रचार को नास्तिकता समझते थे और इन सिद्धान्तों के प्रचार को रोकने के लिए वे सदा प्रभु ईसाको ईंट पत्थरों से मारने को तय्यार रहते थे । इन्हीं सिद्धान्तों के प्रचार के कारण प्रभु ईसा को पकड़कर उनके विरुद्ध अभियोग चलाया गया था और उन्हें सूली की सजा मिली थी । प्रभु ईशा को अपने जिन आध्यात्मिक आचार-विचारों के कारण उमर भर अपने देशवासियों से पीड़ा और यन्त्रणा सहनी पड़ी, वही पीछे से देशवासियों की सद्बुद्धि 1. Bible-St. Johan.3-3 "Verily verily I say unto you except a man be born again, he cannot see the Kingdom of God. 2. पं० सुन्दरलाल - हजरत ईसा और ईसाई धर्म पृ० १३३ -१४०

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