Book Title: Itihas Me Bhagwan Mahavir ka Sthan
Author(s): Jay Bhagwan
Publisher: A V Jain Mission

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Page 23
________________ भगवान महावीर की शिक्षायें १ आत्मा स्वभाव से शिवं, शान्त और सुन्दर है , अजर, अमर और अविनाशी है। आत्मा सरस्म शक्तियों का अंडार है। अपने भाग्य का विधाता है। इसकी उन्नति और अवनति इसके हाथ में है। इस लिये आत्मविश्वासी बनो। २ जिसने प्रात्मस्वरूप और आत्मशक्तियों को जान लिया है वास्तव में बही ज्ञानी है। ३ जो जैसा कर्म करता है वह वैसा ही फल पाता है, कर्म से ही सुख और कर्म से ही दुःख मिलता है इसलिये कर्म करने में बहुत सावधान रहना चाहिये । पवित्र आदर्श सिद्धि के लिये साधनभी पवित्र होना चाहिये। ४ सभीको जीवन प्यारा है इसलिये जियो और जीने दो"। ५ सत्य बाणी बही है जो प्रिय और हित साधक है इस लिये जब बोलो हित मित बचब बोलो। ६ बिना वाजिध हए या बिना दिये लोभ वश दूसरे का द्रव्य लेना अन्याय है इससे सदा बचना चाहिये। ७ वास्तव में संतोष ही धन है । आवश्यकतामों से अधिक वस्तुओं का ग्रहण करना अनेक दुःखों का कारण है । सुख शान्ति के लिये आवश्यकताओं को मर्यादा में रखते हुए उन्हें कम करते रहना चाहिये । ८ मन बचन काय की मीत ही जीत है । इन्द्रियों के विषय भोगों से ऊपर उठना ब्रह्मचर्य है। ६ सात्विक जीवन के लिये शुद्ध शाकाहारी होना आवश्यक है।

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