Book Title: Itihas Me Bhagwan Mahavir ka Sthan
Author(s): Jay Bhagwan
Publisher: A V Jain Mission

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Page 19
________________ कुछ कम प्रभाव नहीं पड़ा है पशुबलि और मांसाहार के बन्द होने से याज्ञिक क्रियाकाण्डों को बहुत धक्का पहुँचा और होते होते वह भी सदा के लिये भारत से विदा हो गया । उसके स्थानमें सदाचारको बड़ी मान्यता मिली यम, नियम ब्रत, उपवास, दान, संयम ही लोगों के जीवन के पुनः धर्म वन गये । ज्ञान, ध्यान, संन्यास और त्यागी वीर महापुरुषों की भक्तिके पुराने आध्यात्मिक मार्गों का पुनरुत्थान हुआ । महावीर के उपरान्त नैदिक संहिताओं ब्राह्मणग्रन्थों और श्रौतसूत्रों जैसे क्रियाकाण्डी साहित्य की बजाय हिन्दुओं में उपनिषद्, पुराण, ब्रह्मसूत्र, गीता योगवासिष्ठ अथवा रामायण जैसे आध्यात्मिक और भक्तिपरक ग्रन्थों को अधिक महत्व मिला। इस संबंधमें बहुतसे विद्वानों का मत है कि हिन्दुओं में जो २४ अवतारों की कल्पना पैदा हुई, उसका श्रेय भी जैनियों की २४ तीर्थङ्कर वाली मान्यता को ही है। खैर कुछ भी हो, इतनी बात तो प्रत्यक्ष है कि इन्द्र, अग्नि वायु वरुण सरीखे प्रोक्षप्रिय मनोकल्पित देवताओंके स्थान में जो महत्ता भगवान कृष्ण और भगवान राम जैसे कर्मठ ऐतिहासिक क्षत्रिय वीरोंको मिली है उसका श्रेय भी भारतकी उस प्राचीन श्रमण संस्कृतियों को ही है, जो सदा महापुरुषों को साक्षात देवता अथवा दिव्य अवतार मानकर पूजती रही है। भारतीय कला और साहित्य में जैन धर्म का स्थान इन अध्यात्मवादी श्रमणों के उपासक लोगोंमें अपने माननीय तीर्थङ्करोंकी मूर्तियां और मन्दिर बनाने, उनकी पूजाभक्ति करने और उत्सव मनाने की जो प्रथायें प्राचीन काल से जारी थीं उनसे महाबीर के उत्तर काल में याज्ञिक क्रियाकाण्डों के उत्सव बन्द हो जाने पर भारत के अन्य धर्म वाले बड़े प्रभावित हुए । ईसा की पहली और दूसरी सदी के करीब हम १ सोझा जी मध्यकालीन भा० संस्कृति १७

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