Book Title: Hirvijaysuri Stuti Author(s): Atmanand Jain Traict Society Publisher: Atmanand Jain Traict Society View full book textPage 3
________________ __( २ ) उनकी देख धर्मतत्परता, सत्याग्रहिता, श्रात्मत्याग, अब्बुलफ़ज़ल तथा अकबर का हुआ उन्ही पर था अनुराग । भक्ति भाव से नम्र नृपति ने पांच यमों का नियम लिया, यथासमय हाज़िर हो करके उपदेशामृत पान किया ॥४॥ पड़ा प्रभाव नृपति अकबर पर किया अहिंसा धर्म प्रचार, धीरे धीरे प्रजा-जनों में भी करता रहता संचार। पर्यवरण की तिथियों में "ऐलान" किया "हो पशवध बन्द", प्रजावर्ग ने भी यह आज्ञा पालन की, हो अति सानन्द ॥५॥ फैली हुई पाशविकता का इस प्रकार अवसान किया, मिलना सब चीज़ों का सस्ता सबको अति आसान किया। खुशी हुई तब सब जीवों को पापपुज्ज का दमन हुआ, मानो कलियुग का विनाश कर सतयुग का आगमन हुआ ॥६॥ अहो ! आज दिन वह तेजस्वी, वह वर्चस्वी नहीं हुआ, "हैवानी ताकत" का नाशक-वीर यशस्वी नहीं हुआ। वर्ना कहो भला क्या रहने पाती यह पापा अग में, जो कि समाई हुई श्राज है इस कलियुग की रग रग में ॥७॥ जय जय मुनिवर ! जय सूरीश्वर ! भारत मा के पुत्र ललाम ! गुण गण राशी, सत् सन्यासी, जगतीतल पर जयतिराम । है नहीं सत्ता, लिखू महत्ता सारी ही, मैं. हे गुरुवर, जो कुछ प्राया, यह लिख पाया, भक्ति भाव से नत होकर ॥८॥ [पं० ब्रह्मदत्त शर्मा]Page Navigation
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