Book Title: Hirvijaysuri Stuti
Author(s): Atmanand Jain Traict Society
Publisher: Atmanand Jain Traict Society

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Page 8
________________ मेरे कहने से इस कारण सभी कैदियों को दे छोड़। जितने पक्षी पले हुए हैं दे उनके पिंजड़ों को तोड़ ॥ [११] पर्यषण में श्राठ दिनों तक, अकबर ! हिंसा कहीं न हो, निरपराध जीवों के शोणित से यह कलुषित मही न हो। भवदाज्ञा को तब अकबर ने अति विनम्र हो मान लिया, मान श्रापका रख उसने जीवों को जीवन-दान किया ॥ [१२] धन्य धन्य श्री हीर विजय मुनि ! धन्य आपका था उपदेश, सुन कर जिसे यवन ने छोड़ा सब जीवों को देना क्लेश । कीर्ति आपकी बनी रहेगी, तब तक मिटती तनिक नहीं॥ जब तक चन्द्र सूर्य्य हैं नभ में जबतक स्थित है अचल मही॥ [१३] वादि-वृन्द को सिंह श्राप थे, विद्या के थे पारावार, विमल-विचार आप थे-जग में, किया आपने धर्म प्रचार । दया-द्रविण के धनद आप थे, उपकृत के थे आप पयोद, पर-दुःख देख दुःख पाते थे, पर-मुद से पाते थे मोद ॥ [१४] वधिकों को भी सौम्य बनाना खेल आपके लिये रहा, सपने में भी मुने ! आपने कभी नहीं दुर्वाक्य कहा। काम क्रोध या द्रोह मोह भी लगे आपके साथ नहीं, रहे स्वतन्त्र सभी तन्त्रों में, रहे किसी के हाथ नहीं ॥ [पंडित रामचरित जी उपाध्याय

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