Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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( १० )
९०-९१, कल्याण सागर ९१-९२, कल्याणसागर II - ९२, कवियण ९२ - ९४, कृपासागर ९४, कृष्णदास ९४-९५, कीर्तिरत्न सूरि ९५-९७, कीर्तिवर्द्धन या केशव ९७-९८, कीर्ति विमल ९८, कीर्तिविजय ९९, कुँवर जी ९९, कुँवर जी II १००, कुँअरपाल - १०० १०१, कुंवर विजय १०१-१०२, भट्टारक कुमुदचंद्र १०२-१०६, वाचक कुशललाभ १०६११२, कुशलवर्धन ११२, कुशलसागर ११२ ११३, केसराज ११४, केशवजी ११५ ११६, केशवविजय ११६, क्षमाहंस ११६, क्षेम ११७, क्षेमकलश ११७, क्षेमकुशल ११७- ११८, क्षेमराज ११८, खइपति ११९, खेम ११९-१२०, गजसागरसूरि शिष्य १२०, (ब्रह्म) गणेश या गणेश सागर १२०-१२१, गुणनन्दन १२१-१२२, गुणप्रभसूरि १२२, वाचक गुणरत्न १२२ - १२४, गुणविजय १२४-१२७, (गणि) गुणविजय १२७१३०, गुणविजय १३०, ( उपाध्याय) गुण विजय १३० - १३७, गुणसागर सूरि १३७ १३९, गुणसागरसूरि ( २ ) १३९, गुणसेन १३९ - १४०, गुणहर्ष १४०, गुणहर्ष शिष्य १४०, गुरुदास ऋषि १४१, (ब्रह्म) गुलाल १४१-१४३, गोवर्द्धन १४३, गोधो (गोवर्द्धन) १४३, गंगदास १४३ - १४४, चन्द्रकीर्ति १४४-१४६, आचार्य चन्द्रकीर्ति १४६ - १४८, चतुर्भुज कायस्थ १४८ - १४९, चारित्रसिंह १४९ - १५, चारुकीर्ति १५०, छीतर १५०१५१, जगा ऋषि १५१, जटमल १५२-१५५, वाचक जयकीर्ति १५५१५६, जयकुल या जयकुशल १५६-१५७, जयचंद १५७ १६०, (वाचक) जयनिधान १६० - १६२, जयमल्ल १६३, (ब्रह्म) जयराज १६३, जयविजय १६४, जयविजय II १६४ - १६६, जयवंतसूरि १६६-१७०, जयसागर १७०-१७१, जयसार १७२ ( उपाध्याय ) जयसोम १७२-१७४, जल्ह १७४, जशसोम १७४ - १७५, ( युग प्रधान ) जिन चन्द्रसूरि १७५१७७, जिनचन्द सूरि II १७७ १७८, पाण्डे जिनचन्द्रदास १७८-१८०, जिनराजसूरि या राजसमुद्र १८० - १८४, जिनसागरसूरि १८४ - १८५, जिनसिंह सूरि १८५, जिनेश्वरसूरि १८५ १८६, जिनोदयसूरि ( आनन्दोदय ) १८६ - १८८ जैनंद १८८-१८९, ज्ञान १८९, ज्ञानकीर्ति १८९ - १९०, ज्ञानकुशल १९०, ज्ञानचंद १९० १९१, ज्ञानतिलक १९१, ज्ञानदास १९१-१९२, ज्ञानमूर्ति १९२ - १९५, ज्ञानमेरु १९५ - १९७, ज्ञानसागर १९७, (ब्रह्म) ज्ञानसागर १९८, ज्ञानसोम १९८, ज्ञानसुन्दर १९८, ज्ञानानंद १९९, डुंगर १९९-२०१, (शाह) ठाकुर २०१, तेजचंद २०२, तेजपाल २०२-२०३, तेज विजय २०३, तेजरत्नसूरि शिष्य २०४, त्रीकम मुनि २०४ - २०६, त्रिभुवनकीर्ति २०६ - २०९, त्रिभुवनचन्द्र
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