Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 16
________________ ( १३ ) वल्हपंडित शिष्य ४५३-४५४, वस्तुपाल (वाचक) ४५४-४५५, (ब्रह्म) वस्तुपाल ४५५-४५६, वसु, वासु या वस्तो ४५६-४५७, वादिचंद ४५७-४५९, विक्रम ४५९, विजयकुशल शिष्य ४६०, विजयमेरु ४६०४६१, विजयशील ४६१, विजयशेखर ४६२-४६४, विजयसागर ४६५४६६, विजयसेन सूरि ४६६, विद्याकमल ४६७, बिद्याकीर्ति ४६७, विद्याचंद ४६८ विद्यासागर ४६९; विद्यासागर II ४६९-४७०, विद्यासिद्धि ४७०, विनय कुशल ४७१, विनयचंद ४७१, विनयमेरु ४७२-४७३, विनयविजय ४७३-४७७, विनयसागर ४७७-४७८, विनयसुन्दर ४५८, विनयसोम ४७१, विमल ४७९-४८०, विमलकीर्ति ४८०-४८१, विमलचरित्र ४८१-४८२, विमलचरित्र सूरि ४८२-४४३ विमलरंगशिष्य (लब्धि कल्लोल ?) ४८३-४८४, विमल रत्न ४८५-४८६, विवेकचंदा ४८६, विवेकचंद II ४८७, विवेकविजय ४८७-४८८, विवेक हर्ष ४८८४९०, विवेकहंस ४९०, वीरविजय ४९०-४९१, शान्ति कुशल ४९१४९२, शाह ठाकुर ४९३, शालिवाहन ४९४, शिवविधान उपाध्याय ४९४-४९६, शिवदास (जैनेतर) ४९६, शुभचन्द्र ४९७, शुभविजय ४९७-४९८, श्रवण ४९८, श्रीधर ४९८, श्रीपाल ऋषि ४९९, श्रीसार (पाठक) ४९९-५०२, श्री सुन्दर ५०२-०३, श्री हर्ष ५०३, श्रुतसागर ५०३, सकलचन्द ५०३-५०६, (भट्टारक) सकलभूषण ५०६, समयध्वज ५०६-५०७, समयनिधान ५०७, समयप्रमोद ५० -५०९, समयराज (उपाध्याय) ५०९, समयसुन्दर (कवियण) ५०९-५११, समयसुन्दर महोपाध्याय ५११-५२३, (महोपाध्याय) सहजकीर्ति ५२३-५२६, सहजकुशल ५२६-५२७, सहजरत्नवाचक ५२७-५२८. सहजरत्न ५२८, सहजसागर शिष्य ५२९, साधु कीर्ति (उपाध्याय) ५२९-५३२, साधुरंग ५३२, सारंग ५३२-५३४, साहिब ५३४, स्थानसागर ५३५-५३६, सिद्धिसूरि ५३६-५३९, सिंहप्रमोद ५३९, संघ या सिंहविजय ५३९५४१, सुधनहर्ष ५४१-५४४. सुधर्मरुचि ५४४, सुन्दरदास ५४५-५४९, सुभद्र ५४९, सुमतिकल्लोल-५४९, सुमतिकीर्ति ५४९-५५३, सुमतिमुनि ५५३-५४, सुमतिसागर ५५४-५५५, सुमतिविजय ५५५, सुमतिसिद्ध (सिंधुर) ८५५-५५६. सुमति हंस ५५६, सूजी ५५७, सरचंदगणि ५५७-- ५५९, सोमविमल सूरि ५५९-५६०, सोमविमलसूरि शिष्य ५६१,. सौभाग्यहर्ष सूरि शिष्य ५६१-५६२, सौभाग्यमण्डन ५६२. संयममूर्ति ५६२-५६३, संयमसागर ५६३, हरजी ५६३-५६५, हरषजी ५६५, हरिफूला ५६५-६६, हर्षकीर्ति ५६६-६७, हर्षकीर्तिसूरि ५६७-६८,. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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