Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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भीममुनि ३२९-३३०, भुवनकीर्ति गणि ३३०-३३३, मतिकीति ३३३३३५, मतिचन्द ३३५, मतिसार ] ३३५-३३७, मतिसार II ३३७, मतिसागर I ३३७-३३८, मतिसागर I ३३४-३३९, मधसूदन व्यास ३३९, मनजी ऋषि ३३९-३४१, मनराम ३४१-३४३, मनोहरदास ३४३, मल्लिदास ३४३-३४४, मल्लिदेव ३४४, महानन्दगणि ३४४३४५, महिमसिंह या मानकवि ३४५-३४८, महिमसुन्दर ३४८ महिमामेरु ३४८-४९, (भट्टारक) महीचंद ३४९-३५०, महेश्वर सूरि शिष्य ३५०, माधवदास ३५१, मानसागर ३५१-३५२, मालदेव ३५२-३५८, मालमुनि ३५८-३५९, माहावजी ३५९, मुनिकीर्ति ३५९-३६०, मुनिप्रभ ३६०, मुनिशील ३६०-३६१, मुक्तिसागर ३६१-६२, मूलावाचक ३६२-३६३, मेघनिदान ३६३, (वाचक) मेघराज ३६३-३६५, मेघराज II ३६५-३६६, (ब्रह्म) मेघराज I (मेघ मंडल) ३६६-३६७, ब्रह्म मेघराज II ३६७-३६८, मंगलमाणिक्य ३६८-३७०, मोहनदास कायस्थ ३७०, (उपाध्याय) यशोविजय ३७०-३७७, यशोविजय - जसविजय ३७७, (भट्टारक) रत्नकीर्ति ३७७-३८०, रत्नकुशल ३८०, (भट्टारक) रत्नचन्द ३८१, रत्नचंद I ३८१, रत्तचन्द II ३८१-३८२, रत्ननिधान ३८२, रत्नभूषणसूरि ३८२-८४, रत्नलाभ ३८५, रत्नप्रभशिष्य ३८५३८६, रत्नविमल ३८६, रत्नविशाल ३८६-३८७, रत्नसार ३८७, रत्न. सुन्दर ३८८-३९०, (मुनि) राजचन्द ३९०, राजचन्द्रसूरि ३९१, राजपाल ३९१-३९२, राजमल्ल (पाण्डे) ३९२-३९३, (कवि) राजमल ३९३-३९५, राजरत्न गणि ३९६-३९७, राजसागर उपाध्याय ३९७३९८ राजसागर ३९८-३९५, राजसमुद्र या जिनराज सूरि ३९९-४०० राजसिंह ४००-४०१, राजसुन्दर ४०१-४०३, राजहंस I ४०३-४०४, राजहंस II ४०४-४०५, रामदास ऋषि ४०५-४०६, रामचन्द ४०६, (ब्रह्म रायमल्ल ४०७-४१८, (पाण्डे) रूपचंद ४१८-४२२, रंगकुशल ४२२-४२३, रंगविमल ४२३ ४२४, रंगसार ४२४-२५, लखपत ४२५, लक्ष्मीकुशल ४२६-४२७, लक्ष्मीप्रभ ४२७-४२८, लक्ष्मीमूर्ति ४२८४२९, लक्ष्मीविमल ४२९-४३०, लब्धिकल्लोल उपाध्याय ४३०-४३३, लब्धिरत्त या लब्धिराज ४३४, लब्धिविजय ४३४-४३७, लब्धिशेखर ४३७, ललितकीर्ति ४३७-४३९, ललितप्रभ सूरि ४३९-४४०, लाभोदय ४४१, लइआ ऋषि शिष्य ४४१-४४३, लालचन्द ४४३-४४५. लालविजय ४४५-४४७, लावण्यकीर्ति ४४८-४४९, लावण्यभद्र गणि शिष्य “४४२, लणसागर ४५०, वच्छराज ४५०-४५२, वर्तमान कवि ४५२,
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