Book Title: Hindi Gujarati Kosh Author(s): Maganbhai Prabhudas Desai Publisher: Gujarat Vidyapith View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगाउनी आवृत्तिनां निवेदनोमांथी राष्ट्रभाषाने शिक्षणमा स्थान होवु जोईए एम गांधीजी दक्षिण आफ्रिकाथी हिंद भाव्या त्यारथी सतत कहेता आव्या छे. एटले, राष्ट्रीय शिक्षणनी शरूआतथी तेमां तेने अनिवार्य स्थान आपवामां आव्युं छे; अने ते मुजब, विद्यापीठनी स्थापनाथी राष्ट्रभाषाना शिक्षणने तेमा स्थान रघु छे. बल्के, विद्यापीठनां ध्येयोमा ज ए विषे एक कलम छे के, “ विद्यापीठमां राष्ट्रभाषा हिंदी-हिंदुस्तानीने आवश्यक स्थान हशे.” अने तेनी ज साथे ए भाषानी व्याख्यानी स्पष्टता करवा नोंध मूकवामां आवी छे के, “ हिंदी-हिंदुस्तानी ए भाषा के जे उत्तरना सामान्य हिंदु मुसलमान बोले छे अने देवनागरी अथवा फारसी लिपिमा लखाय छे." १९३० थी '३४ना युद्धना दिवसो वाद, ई. स. १९३५ मा विद्यापीठे नवेसर पोतार्नु काम शरू कर्यु त्यारे राष्ट्रभाषाने अंगे एक वधु काम पण तेणे उपाडा, भने ते पोताने स्थानेथी बने तेटली राष्ट्रभाषाप्रचारने मदद करवान. आने अगे १९३६मां विद्यापीठ मंडळे एक कार्यदिशा पण आंकी हती, अने तेमां गुजरातनी प्रजाने उपयोगी थाय एवो नानकडो राष्ट्रभाषानो कोश करवो, एQ एक कार्य हतुं. आ कोश ते अनुसार करवामां आव्यो छे. गुजरातमां राष्ट्रभाषाप्रचार काम एक रीते जोईए तो साव सहेलुं छे. अ-हिंदीभाषी प्रान्तोनी भाषाओमा गुजराती भाषा कदाच हिंदुस्तानीनी साथे घणी ज मळती भावे छे. वेना शब्दभंडोळमां तद्भव अने तत्सम शब्दो ठीक ठीक प्रमाणमां सरखा छे, अथवा फेरफार छे तो एवो जजजाज के भणेलो गुजराती वाचक सामान्य हिंदी शब्दोनो अर्थ कल्पी शके. एटलं ज नहि, गुजरातमांथी हिंदी लेखको पण पाक्या छे. वळी, व्रजभाषा साथेनो तेनो सांस्कृतिक संबंध सैकांथी एकसरखो चालतो आवेलो छे. राष्ट्रभाषाना स्वयंसिद्ध प्रचारक समा साधुसंन्यासीओ गुजरातनां गामडांमां हमेश फरता रह्या छे अने तेओए हिंदी साथेनो तेनो संपर्क सतत चालु राखेलो छे. अने तेथी गुजरातमां गिरिधर करताय कदाच तुलसी-रामायण वधारे वंचाय छे. कबीर अने दादुनां भजनो तेमना पंथ मारफते हजी जीवतां रहेलां छे. आ उपरति गुजराती वेपारी पण करोडोनी भाषाने कामचलाउ जाण्या वगर ओछो ज रहे एवो छे ? गुजरातना मुसलमान राजाओना काठमां फारसी अरबीनी असर पण तळपदी भाषामा ओछी ऊतरी नथी. एटले, गुजरातने माटे राष्ट्रभाषाप्रचारकार्य सहेलुं छे एमां प्रश्न नथी. पण तेथी ज कदाच ए विषे उपेक्षा थवानो पण भोरे भय रहे छे. मात्र वेपार के मुसाफरीनी सवड पूरतो ज परिचय जरूरी छे एम जो मनाय, तो तेटला परिचयथी आपणे एक बोली जरूर शीखी लई शकीए. परन्तु राष्ट्रभाषा एवी बोली मात्र नथी. तेणे तो हिंदनी एकतानुं अने आपणी हिंदी संस्कृतिनुं वाहन बनवानुं छे. प्रजाना राजकारणनी भाषा तो आज भापणी नजर सामे ते बनी रही छे. अनेक प्रांतीय साहित्य-प्रवाहो ए ज मोटी राष्ट्रगंगामां मवाना छे. आज आपणां प्रांतीय साहित्यो सहेजे बनी जतो परस्पर संबंध कदाच साधे छे. For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 593