Book Title: Hindi Gujarati Kosh Author(s): Maganbhai Prabhudas Desai Publisher: Gujarat Vidyapith View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्दभंडोळ लगभग ३३००० जेटलं थयुं छे. परिणामे कोशन कद अने किंमत ते मुजब वध्यां छे. हिंदी भाषानो अभ्यास हवे आपणी बधी शाळाओ तथा कॉलेजोमां चालशे. आ कोश तेमां सोने मददरूप थशे एवी आशा छे. शब्दो पसन्द करवामां जे नीति पहेली आवृत्तिथी लीधेली छे ते ज कायम छे. आपणी आंतरभाषानुं स्वरूप आपणी विपूल राष्ट्रीयताने अनुरूप अने तेवं ज वैविध्यपूर्ण अने व्यापक हशे. तेमां शब्दो अपनाववानी अनोखी शक्ति रहेली छे. ते तेनो भारे गुण छे. बंधारणे जणाव्यं छे के, आपणी भाषानी प्रकृति मजब, शब्दो गमे त्यांथी लेवा घटे ते लेवा जोईशे. आ भाषा हवे खूब शक्तिशाळी बनवी जोईए. हिंदनी बधी भाषाओनी साथे ते पण विकसवी जोईए. हिंदीभाषी प्रदेश माटे आथी एक खास जवाबदारी आवे छे. तेओ पोतानी भाषा परत्वे अतिअभिमान न धरावे. ते तेमनी प्रदेशभाषा के स्वभाषा छे; तेवी ज तेमना देशबांधवोनी पण स्वभाषा छे. बे वच्चे सरसाई न होय; विरोध न होय. एमनी भाषानी मूळ प्रकृतिना काठाने वफादार रहीने आपणी आंतरभाषा हिन्दी बनशे अने चालशे. आ वस्तु लक्षमा राखीने जो ते भाषानो विकास करवामां आवे, तो ते भाषा दुनियानी एक मातबर प्रजानी भाषा बने अने तेवू मान पण तेने जगतना दरबारमा मळे. एम करवू होय तो दरेक राष्ट्रप्रेमी हिंदीए ए भाषाने शीखीने तेने खीलववामां भाग लेवो जोईए. आ कोश गुजराती बोलता हिंदीओने एमां मदद करशे एवी आशा छे. अंते तेमने विनंती के, आ कोशने वधु उपयोगी बनाववामां तेओ बनती मदद करे. २-१०-१९५६ म० प्र० देसाई For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 593