Book Title: Hastlikhit Granth Suchi Part 02
Author(s): Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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[ ३१७
हस्तलिखित ग्रन्य-सूची, भाग-२, परिशिष्ट-१ ]
२१-हिन्दी
५३९८
अध्यात्मरामायण आदि
॥ श्रीरामाय नम ॥ दोहा- जुधकांड पूरन भयौ, ब्रह्मज्ञांनके भाइ।
उतरकांड कहत हौं, बिधिसौं सबै बनाय ।। १ चौपई- जयति जयति रघुकुल उजियारे । जयति राम कौसल्या प्यारे ॥
रावन दस सिर मारयौ यैन । राम कमल दल निरमल नैन ॥ २ अन्त- संवत सत्र हस इकताला । तीज जेठकी चंद उजाला ॥
पूरन भयौ मउ मैंदान । यहई जानौं थान मुकाम ॥ ११० ग्रंथ हौत भए बिघन सु भारे । हनुमान गनपति सब टारे ।।
भगवान ग्रंथ यह पूरन गायौ । गुरकी कृपा सबै बनि प्रायौ ॥ १११ छंद- भंग अक्षिर कटित, अर्थ बिपरजै होइ।
दुषनतें भूषन करें, कोबिद कहिए सोई ।। ११२ इति श्रीब्रह्मांड पुराणे उतरषंडे अध्यातम रामायने उमा महेश्वर संवादे उतरकांडे नवमौ अध्याय ॥ ६ ॥ मूल ४४६३ ।। भाषा ५२६६ ।। इति श्री रामचरित्र भगवानदास निरंजनी कथिते संपूरण । सुभं मंगल । सुभ.भवत । वषे जेठ मासे बदि दसै रिबि बासुरे ॥ संवत .१७८३ ।। जले रक्षत पेले रक्षित पेले रक्षे रक्षे सथ लाभ तवधानान मूरप हस्त न दातव्यं । रावे बधनात पुस्तकं ॥ १॥ मंगल लिषकानां पाठकांनाव मंगल मंगल सर्व देवानां भूमी भूपति मंगल ॥ १ ॥ सति निरंजन तुम सरना मंत्र सति राम ॥ राम राम ।। ५३८२
कवित्त संग्रह आदि
॥ श्री महागणपतये नम ॥ कवित्त- सील भरी सोंहैं, आन पतिकौं न जोंहें,
कुल कांनि अरसोहें तन जोति सरसाती हैं। उदैनाथ भोंहें कर तीन तीरछोहें रति भोंन लों चलों द्वार लों ना चलि जाती हैं । वेंन कहिवेकों पति मोनहीमें राचे प्रान, असी कुलवधू काहू कासों बतराती हैं। रिस रचें मनमें तो मनहीमें मेंटें, जैसे जलकी लहरि जल मांझ ही बिलाती हैं ॥ १
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अन्त
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दोहा- सांवन सुदिकी तीजकों, करी पचीसी सार ।
संवत अठ्ठारह सतहि त्रेपन थिर सनिवार ।। १०७८ इति छक पच्चीसी संपूर्णः ।। संवत १८६३ शाके १७२७ मिति फाल्गुण बुदि १२ गुरु
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