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मी ॥ सो० ॥ ए तो बीजा उल्लासनी ढाल, लब्धियें नांखी बारमी ॥ ३१ ॥ सो० ॥
॥ दोहा ॥
॥ वलि करूं पंथी सांजलो, महारा तातनां चिन्ह || न्याय करे जइ नृपकने, माली नीम खदीन ॥ १ ॥ कहो स्वामी जे करपणी, मसकत करी निपाय ॥ ते कण फलने करपणी, जोगवे के न जोगाय ॥ २ ॥ तव नरपति कहे मालिने, जे करे मसकत अंग ॥ ते कण फल सुखें वावरे, न्यायी यइ ते अनंग ॥ ३ ॥ ए हवो न्याय ठरावियो, मानियें परषद मांह ॥ पंचनी साखें ए न्यायनुं, लिखित कस्युं ते बाह ॥ ४ ॥ तेह लिखत लेई करी, व्यो जनक ते गेह ॥ वात नही मुफ जनकियें, मौन धरी रहि तेह ॥ ५ ॥ ऊ जनक संबंधियें, जास्यो महोटो अन्याय ॥ गृह मू की तव निकलियां, वसियां बीजे जाय ॥ ६ ॥ तिल दिनथी गृह शून्य में, मुऊने राखे तात ॥ मृतकसमा न करी वहे, मंत्रबलें ते प्रजात ॥ ७ ॥ सारो दिन वाडियें रहे, करे तें वननुं काज ॥ नृपने फल फुल दे इने, यावे मुजकनें सांऊ ॥ ८ ॥ तुंबी जल जेई करी,
तव मु
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