Book Title: Haribal Macchino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 291
________________ ( २८९ ) ॥ ढाल पच्चीशमी ॥ समदम खंतितणा गुण पूरा, संगम रंगरगाण है। ए देशी ॥ राग धन्याश्री ॥ श्री मुनिचं जे केवली पासें, संजम नासें रे ॥ केवलीयें पण ढील न कीधी, जिननी शिक्षा दीधी रे ॥ १ ॥ सुपो नवियां हरिबल, जे ऋषिराया ॥ ए यांकणी ॥ जैन मारग दीपाया रे ॥ पंच सयानुं संयम बेइ, मनु जव सफल करेई रे ||२|| सु०॥ पंच महाव्रत सुरगिरि केरो, नार उपा ड्यो जलेरो रे ॥ पंच सयाशुं हरिबल साधु, यया मुनिजनमें वाधु रे ॥ ३ ॥ सु० ॥ चौद पूर्वनी विद्या यापी, श्रुत केवली पद थापी रे ॥ विहार करे मुनि चंदजी संगें, हरिऋषि पंचरों रंगें रे ॥ ४ ॥ सु० ॥ दशविध जतिनो धर्म ते पाली, यातम नव अजु वाली रे ॥ तप गर्ने करी कर्म प्रजाली, मोहनी जाल ते बाली रे ॥ ५ ॥ सु० ॥ कल ध्यानने चोथे पढ़ें ते, हरिबल ऋषि गुन चडीया रे ॥ हरिकृषि परि कर चुकल ध्यानें, ते पण कर्मशुं नडिया रे ॥ ६ ॥ ॥ सु० ॥ तेरमें गुणठाणे ते खाया, केवल कमला पाया रे || सुर करे नंद कमलनी रचना, ज्ञानी दीवा कर वाया रे || ७ || सु० ॥ तिन नुवन ज्युं करजल १९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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