Book Title: Haribal Macchino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 267
________________ ( २६५) त नामा हिज जलो, सकल कला गुणगेह ॥ १ ॥ सगपण तो काई नथी, जे सगपणथी अधीक ॥ पा डोशीने नेहले, सगपण जाणे नजीक ॥ २ ॥ तस घर अहोनिश दो धिया, खंमा विशाखा जेह ॥ सुख फुःखनी जे वातडी, करवा आवे तेह ॥ ३ ॥ सुदत्त नो एक पुत्र ,वसुदत्त एहवे नाम ॥ रूप कला गुण चातुरी, उपे ते अनिराम ॥ ४ ॥ ते दो माहे विशेष बे, खंमानो घणो राग ॥ दास कुतूहल वातनो, कर तां नावे ताग ॥५॥ दो नारी वसुदत्तगुं, राखे ताली एक ॥ सरखा सरखी जोडली,तिणे करे हास्य विवेक ॥ ६ ॥ एक दिन ते वसुदत्तरां, खंमा डेडी वात ॥ कर्म कुतूहल वारता, करतां थयो प्रजात ॥ ॥ ७ ॥ प्रह फाटो तव आपणे, आवी खंमा घेर । रीष करी माता कहे, शी होशे तुझ पेर ॥ ७ ॥ एह वचन कह्याथकी, खंमा रीसाणी मात ॥ अणबोली रहि मातथी, बार घडी निज धाम ॥ ए ॥ जोजन वेला अवसरें,खंमा न जमे कांय॥रीष उतारीमावडी, सदु जमियां तिण ठाय ॥ १० ॥ एक दिन हरिनट्ट ने घरे, सुदत्त ले परिवार ॥ मिजलस करी बेग तिहां, करवा वातो सार ॥ ११॥ तेहवे पण याव्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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