Book Title: Haribal Macchino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 276
________________ (२७४) जी ॥ ह ॥ २३ ॥ आव्या जन बदु जोश जी ॥ ॥ हं० ॥ कहे हणी गयो को जी॥ह ॥ सजन कुटुंब सदु रोवे जी ॥ ६ ॥ जावे ज्युं खाल होवे जी॥ ह ॥ २४ ॥ फट रे देव तुं उष्ट जी ॥हा॥ विण खूने शे रुष्ट जी॥ ह० ॥ सुनंद कहे रे नाई जी॥ह॥ शुं गयो देह देखाई जी ह॥२॥ इणि परें याकंद करतां जी॥हण॥ मृत कारज तस धरतां जी॥ह ॥ धिग संसार असार जी॥ह ॥ धिग जे लेखवे सार जी ॥ ह ॥ २६॥ श्म ते मनमें वि चारी जी॥ह ॥ जयदेव आप संजारी जी ॥६॥ जयदेव सूनंद साथें जी ॥ ६ ॥ ले दीदा मुनि हाथें जीह॥७॥ खंमा विशाखा दो कुमरी जी॥ह॥ नपनंदनुं सुख समरी जी॥ ह ॥ दीदा अजा पासें जी॥हा॥ ले व्रत पाले उल्लासें जी॥हा॥२॥ हरि नह सुदत्त जेह जी॥हा॥ ले दीदा पण तेह जी॥ ॥ह ॥ मोहनीकर्म संबंधे जी ॥ ह ॥ नपनं दशुं मन बंधे जी ॥ ह ॥ २ ॥ चोथा नन्नासनी ढाल जी॥हा॥ एकवीशमी गुणमाल जी॥हा॥ लब्धी नवनय मेली जी ॥ ह ॥ कहुँ उपनय मन नेली जी ॥ ह ॥ ३० ॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294