Book Title: Haribal Macchino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 281
________________ (२७) ज्य दो पामीयां रे, पूज्या पूर्वे जिन जगवान ॥ तस पुण्य जोगें रे सागर देवथी रे, जगमा वजाव्यां जीत नीशाण ॥॥हा॥ इणिपरें ना रे हरिबल आगलें रे, पूरव नवनुं जे वृत्तांत ॥ मन्बीयें दोढुं रे तेहबु ज्ञानथी रे, जाति समरणे लह्यो उपशांत ॥ ॥२३॥ह ॥धीवर बायो रे केवली वयणथी रे, संजम लेवा थयो उजमाल ॥ चोथे नन्नासें रे ढाल बावीशमी रे, कही लब्धे जो शास्त्र संजाल ॥२॥ ॥दोहा॥ ॥धीवर नृप मन चिंतवी, प्रणमी गुरुना पाय॥ आव्यो आपण मंदिरें, समतागुं चित्त लाय ॥१॥ श्रीबल सुबल निज पुत्रने,राज्य जलावी दोय॥अनग्गज लइ संजम तणी, हरिबल मही सोय ॥१५ वागुल सिरी कुसुमसिरी, दो पट्टराणी एह ॥ तस जन नुमति लीये, संजम वरवा तेह ॥३॥ तव दो रे ॥ कंतने, नांखे प्राणाधार ॥ संयम पालवु द्रोतिश जटा वहेवो करितार ॥ ४ ॥ मदन दशनें अयचणा, कंसा तां जिम उर्लन ॥ तिम पियु संजम दोहिद्यु, पालवे जाणो अचंन ॥५॥ सुरगिरि तोलवो त्राजुवे, चढवो लेश गिरि नार ॥ चालवु खंमा धार ज्यु, तिम वहेवो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294