Book Title: Gunsthan Prakaran
Author(s): Fulchand Shastri, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 8
________________ गुणस्थान-प्रकरण में स्थित काल का निर्देश पाया जाता है। अथवा, जैसे घट का भाव, शिलापुत्रक का (पाषाणमूर्तिका) शरीर; इत्यादि लोकोक्तियों में एक या अभिन्न में भी भेद व्यवहार होता है, उसी प्रकार से यहाँ पर भी एक या अभिन्न काल में भी भेदरूप से व्यवहार बन जाता है। १३. शंका - काल कितने प्रकार का होता है? समाधान - १. सामान्य से एक प्रकार का काल होता है। २.अतीत, अनागत और वर्तमान की अपेक्षा तीन प्रकार का होता है। ३. अथवा गुणस्थितिकाल, भवस्थितिकाल, कर्मस्थितिकाल, कालस्थितिकाल, उपपादकाल और भावस्थितिकाल इसप्रकार काल के छह भेद हैं। ४. अथवा काल अनेक प्रकार का है; क्योंकि परिणामों से पृथग्भूत ___ काल का अभाव है, तथा परिणाम अनन्त पाये जाते हैं। यथार्थ अवबोध को अनुगम कहते हैं, काल के अनुगम को कालानुगम कहते हैं। उस कालानुगम से निर्देश, कथन, प्रकाशन, अभिव्यक्तिजनन, ये सब एकार्थक नाम है। वह निर्देश दो प्रकार का है, ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उक्त दोनों प्रकार के निर्देशों में से ओघनिर्देश-द्रव्यार्थिकनय का प्रतिपादन करनेवाला है; क्योंकि उसमें समस्त अर्थ संगृहीत है। आदेशनिर्देश पर्यायार्थिकनय का प्रतिपादन करनेवाला है; क्योंकि, उसमें अर्थभेद का अवलंबन किया गया है। १४. शंका - वृषभसेनादि गणधरदेवों ने दो प्रकार का निर्देश किसलिए किया है? समाधान - यह कोई दोष नहीं; क्योंकि, द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक, इन दोनों नयों को अवलम्बन करके स्थित प्राणियों के अनुग्रह के लिए दो प्रकार के निर्देश का उपदेश किया है। मिथ्यात्व गुणस्थान सूत्र - ओघ से मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं? नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल होते हैं।॥२॥ 'जिसप्रकार से उद्देश्य होता है, उसीप्रकार से निर्देश किया जाता हैं'; यह बात जतलाने के लिए सूत्र में 'ओघ' पद का निर्देश किया। 'मिथ्यादृष्टि' पद का निर्देश, शेष गुणस्थानों के प्रतिषेध के लिए है। 'काल से' अर्थात् काल की अपेक्षा जीवों के संभालने पर 'कितने काल तक होते हैं' इसप्रकार की यह पृच्छा 'यह सूत्र जिनप्रज्ञप्त है' इस बात के बताने के लिए है। जीवों के बहुत होने पर भी 'नाना जीव' इसप्रकार का यह एक वचन का निर्देश जातिनिबंधनक है, इसलिए कोई दोषोत्पादक नहीं है। 'सर्वाद्धा' यह पद कालविशिष्ट बहुत से जीवों का निर्देश करनेवाला है; क्योंकि, सर्व अद्धा अर्थात् काल जिन जीवों के होता है, इसप्रकार से 'व' समास अर्थात् बहुब्रीहि समास के वश से बाह्य अर्थ की प्रवृत्ति होती है। ___ अथवा 'सर्वाद्धा' इस पद से काल का निर्देश जानना चाहिए; क्योंकि, मिथ्यादृष्टियों के कालत्व से अभिन्न परिणामी के परिणामों से कथंचित् अभेद का आश्रय करके मिथ्यादृष्टियों के कालत्व का कोई भेद नहीं है। अर्थात् नाना जीवों की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीवों का सर्वकाल व्युच्छेद नहीं होता है, यह कहा गया है। सूत्र - एक जीव की अपेक्षा काल तीन प्रकार है, 9. अनादि अनन्त, २. अनादि सान्त और ३. सादि-सान्त।। इनमें जो सादि और सान्त काल है, उसका निर्देश इसप्रकार है - एक जीव की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीवों का सादि-सान्त काल जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है।।३।।

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