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सासादन
प्रथमोपशम सम्यक्त्व के अंतर्मुहूर्त काल में से जब जघन्य एक समय या उत्कृष्ट छह आवली प्रमाण काल शेष रहे, उतने काल में अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ में से किसी एक कषाय के उदय में आने से सम्यक्त्व की विराधना होने पर श्रद्धा की जो अव्यक्त अतत्त्वश्रद्धानरूप परिणति होती है, उसको सासन या सासादन गुणस्थान कहते हैं।
सम्यक्त्वरूपी रत्नपर्वत के शिखर से गिरकर जो जीव मिथ्यात्वरूपी भूमि सम्मुख हो चुका है, अतएव जिसने सम्यक्त्व की विराधना (नाश) कर दी है, और मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं किया है, उसको सासन या सासादन गुणस्थानवर्ती कहते हैं।
9 सासादन गुणस्थान से ऊपर के किसी भी गुणस्थानों में जीव का गमन नहीं होता। मात्र मिथ्यात्व में गमन होता है।
सासादन से गमन
१ मिथ्यात्व में
गुणस्थान- प्रकरण
मात्र तीन
गुणस्थानों से सासादन में
आगमन
६ प्रमत्त विरत से
४,५,६ इन गुणस्थानों से मात्र प्रथमापशम
9 आते हैं, क्षायोपशमिक, क्षायिक सम्यक्त्वी
का सासादन में आगमन नहीं होता ।
सम्यग्दृष्टि ही सासादन में
५ देशविरत से
४ अविरत
सम्यक्त्व से
सासादन
आगमन
मिथ्यात्व से
सासादन में आगमन
नहीं होता ।
मिथ्यात्व
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सम्यग्मिथ्यात्व
सम्यग्मिथ्यात्व
सम्यग्मिथ्यात्व नामक दर्शनमोहनीय कर्म के उदय के समय में अर्थात् निमित्त से गुड़ मिश्रित दही के स्वाद के समान होनेवाले जात्यन्तर परिणामों को सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान कहते हैं।
तृतीय गुणस्थानवर्ती जीव सकल संयम या देशसंयम को ग्रहण नहीं करता और न ही इस गुणस्थान में आयुकर्म का बन्ध होता है। तथा गुणस्थानवाला जीव यदि मरण करता है तो नियम से सम्यक्त्व या मिथ्यात्वरूप परिणामों को प्राप्त करके ही मरण करता है, किन्तु इस गुणस्थान में मरण नहीं होता है ।
४ अविरत सम्यक्त्व में
सम्यग्मिथ्यात्व से गमन
१ मिथ्यात्व में
क्षायिक सम्यग्दृष्टि चौथे गुणस्थान से नीचे नहीं आयेगा
६ प्रमत्तसंयत से
५ देशविरत से
४ अविरत सम्यक्त्व से
सम्यग्मिथ्यात्व में आगमन
सादि मिथ्यादृष्टि
मिथ्यात्व से