Book Title: Gunsthan Prakaran
Author(s): Fulchand Shastri, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 20
________________ गुणस्थान-प्रकरण सूत्र - एक जीव की अपेक्षा असंयतसम्यग्दृष्टि जीव का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है।।१४|| ४१. शंका - यह काल कैसे संभव है? अविरत सम्यक्त्व में आगमन - समाधान - जिसने पहले असंयमसहित सम्यक्त्व में बहुत बार परिवर्तन किया है, ऐसा कोई एक मोहकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता रखनेवाला १. मिथ्यादृष्टि जीव अथवा २. सम्यग्मिथ्यादृष्टि अथवा ३. संयतासंयत अथवा ४. प्रमत्तसंयत जीव असंयतसम्यग्दृष्टि हुआ। अविरत सम्यक्त्व से गमन - फिर वह सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त काल रह करके १. मिथ्यात्व को अथवा २. सम्यग्मिथ्यात्व को अथवा ३. संयमासंयम को अथवा ४. अप्रमत्तभाव के साथ संयम को प्राप्त हुआ। ऊपर के गुणस्थानों से संक्लेश के साथ जो असंयतसम्यक्त्व को प्राप्त हुए हैं, वे जीव उसी अविनष्टसंक्लेश के साथ मिथ्यात्व अथवा सम्यग्मिथ्यात्व को प्राप्त कराना चाहिए। जो अधःस्तन गुणस्थानों से विशुद्धि के साथ असंयम सहित सम्यक्त्व को प्राप्त हुए हैं, वे जीव उसी अविनष्टविशुद्धि के साथ संयमासंयम को अथवा अप्रमत्तभाव के साथ संयम को ले जाना चाहिए, अन्यथा असंयतसम्यक्त्व का जघन्यकाल नहीं बन सकता है। सूत्र - असंयतसम्यग्दृष्टि जीव का उत्कृष्ट काल सातिरेक तेतीस सागरोपम है ||१५|| ४२. शंका - यह सातिरेक तैतीस सागरोपमकाल कैसे संभव है? समाधान - एक १. प्रमत्तसंयत अथवा २. अप्रमत्तसंयत अथवा ३. चारों उपशामकों में से कोई एक उपशामक जीव एक समय कम तैतीस सागरोपम आयुकर्म की स्थितिवाले अनुत्तर विमानवासी देवों में उत्पन्न हुआ और इसप्रकार असंयमसहित सम्यक्त्व की आदि हुई। इसके पश्चात् वहाँ से च्युत होकर पूर्वकोटिवर्ष की आयुवाले षट्खण्डागम सूत्र-१३,१४,१५ मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। वहाँ पर वह अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आयु के शेष रह जाने तक असंयतसम्यग्दृष्टि होकर रहा। तत्पश्चात् (१) अप्रमत्तभाव से संयम को प्राप्त हुआ। पुनः प्रमत्त और अप्रमत्तगुणस्थान में सहस्रो परिवर्तन करके, (२) क्षपकश्रेणी के प्रायोग्य विशुद्धि से विशुद्ध हो, अप्रमत्तसंयत हुआ। (३) पुनः अपूर्वकरणक्षपक, (४) अनिवृत्तिकरणक्षपक, (५) सूक्ष्मसाम्परायक्षपक, (६) क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ, (७) सयोगिकेवली, (८) और अयोगिकेवली, (९) होकर के सिद्ध हो गया। इन नौ अन्तर्मुहूर्तों से कम पूर्वकोटि काल से अतिरिक्त तैतीस सागरोपम असंयतसम्यग्दृष्टि का उत्कष्टकाल होता है। ४३. शंका - ऊपर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान का उत्कृष्ट काल बतलाते हुए उक्त जीव को एक समय कम तैतीस सागरोपम आयु की स्थितिवाले देवों में ही किसलिए उत्पन्न कराया गया है? समाधान - नहीं, अन्यथा, अर्थात् एक समय कम तैतीस सागरोपम की स्थितिवाले देवों में यदि उत्पन्न न कराया जाय तो, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान के काल में दीर्घता नहीं पाई जा सकती है; क्योंकि यदि पूरे तैतीस सागरोपम आयु की स्थितिवाले देवों में उत्पन्न कराया जायेगा तो वर्षपृथकत्वप्रमाण आयु के अवशेष रहने पर निश्चय से वह संयम को प्राप्त हो जायेगा। किन्तु जो एक समय कम तैतीस सागरोपम आयु की स्थितिवाले देवों में उत्पन्न होकर मनुष्यों में उत्पन्न होगा, वह अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि प्रमाण काल असंयम के साथ रहकर पुनः निश्चय से संयत होगा। इसलिए, अर्थात्, असंयतसम्यक्त्व के काल की दीर्घता बताने के लिए एक समय कम तैतीस सागरोपम आयु की स्थितिवाले अनुत्तरविमानवासी देवों में उत्पन्न कराया गया है। 20

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