Book Title: Gunsthan Prakaran
Author(s): Fulchand Shastri, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 17
________________ ३२ गुणस्थान- प्रकरण इसप्रकार से ग्रीष्मकाल के वृक्ष की छाया के समान उत्कर्ष से पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र कालतक जीवों से अशून्य (परिपूर्ण) होकर, सासादन गुणस्थान पाया जाता है। ३०. शंका- सो वह काल कितना है? समाधान - अपनी अर्थात् सासादन गुणस्थानवर्ती राशि से असंख्यातगुणा है। वह इसप्रकार है - सासादन गुणस्थान के निरन्तर उपक्रमण का काल आवली के असंख्यातवें भाग मात्र है । किन्तु सान्तर उपक्रमण के बार तो पल्योपम के असंख्यातवें भागमात्र हैं। ये बार इसप्रकार होते हैं, ऐसा मानकर सासादन गुणस्थान के उत्कृष्ट काल की उत्पत्ति का विधान कहते हैं। वह इसप्रकार है - एक जीव के सासादन गुणस्थान के उपक्रमण बार का यदि मध्यम प्रतिपत्ति से आवली के असंख्यातवें भाग मात्र सासादन गुणस्थान का काल पाया जाता है, अथवा संख्यात आवली मात्र, अथवा आवली के संख्यातवें भाग मात्र काल पाया जाता है; तो पल्योपम के असंख्यातवें भागमात्र उपक्रमण बारों का कितना काल प्राप्त होगा ? इसप्रकार इच्छाराशि से गुणित फलराशि को प्रमाणराशि से अपवर्तित करने पर अपनी राशि से असंख्यातगुणा सासादन गुणस्थान का काल होता है, ऐसा ग्रहण करना चाहिए। यद्यपि इस विषय में कोई सूत्रप्रमाण उपलब्ध नहीं है, तो भी यह व्याख्यान सूत्र के समान श्रद्धान करने योग्य है। सूत्र एक जीव की अपेक्षा सासादनसम्यग्दृष्टि का जघन्य काल एक समय है ॥ ७ ॥ अब इस सूत्र का अर्थ कहते हैं - एक उपशमसम्यग्दृष्टि जीव उपशमसम्यक्त्व के काल में एक समय अवशिष्ट रहने पर सासादन गुणस्थान को प्राप्त हुआ । ३१. शंका - यदि उपशमसम्यक्त्व का काल अधिक हो, तो क्या दोष है ? 17 षट्खण्डागम सूत्र ७, ८ ३३ समाधान नहीं, क्योंकि उपशमसम्यक्त्व का काल अधिक मानने पर सासादन गुणस्थान काल के भी बहुत्व का प्रसंग प्राप्त होता है, अर्थात् सासादनगुणस्थान का काल बहुत मानना पड़ेगा। इसका कारण यह है कि जितने उपशमसम्यक्त्वकाल के शेष रहने पर जीव सासादनगुणस्थान को प्राप्त होता है, उतना ही सासादन गुणस्थान का काल होता है, ऐसा आचार्य परम्परागत उपदेश है। कहा भी है गाथार्थ - जितने प्रमाण उपशमसम्यक्त्व का काल अवशिष्ट रहता है, उस समय सासादन गुणस्थान को प्राप्त होनेवाले जीवों का भी उतने प्रमाण ही उसका, अर्थात् सासादन गुणस्थान का काल होता है ।। ३१ ।। इस पूर्व में बतलाए हुए प्रकार से उक्त जीव एक समय मात्र सासादन गुणस्थान के साथ, अर्थात् उस गुणस्थान में दिखाई दिया और द्वितीय समय में मिथ्यात्व को प्राप्त हो गया। इसप्रकार सासादन गुणस्थान का एक जीव की अपेक्षा जघन्यकाल एक समयप्रमाण उपलब्ध हुआ । सूत्र एक जीव की अपेक्षा सासादनसम्यग्दृष्टि का उत्कृष्ट काल छह आवलीप्रमाण है ॥८ ॥ अब इस सूत्र का अर्थ कहते हैं - एक उपशमसम्यग्दृष्टि जीव उपशमसम्यक्त्व के काल में छह आवलियों के शेष रहने पर सासादनगुणस्थान में गया। उस सासादन गुणस्थान में छह आवली रह करके मिथ्यात्व में गया; क्योंकि साधिक छह आवलियों के शेष रहने पर सासादन गुणस्थान प्राप्त होने का अभाव है। कहा भी है गाथार्थ - यदि उपशमसम्यक्त्व का काल छह आवलीप्रमाण अवशिष्ट होवे, तो जीव सासादन गुणस्थान को प्राप्त होता है। यदि इससे अधिक काल अवशिष्ट रहे, तो सासादन गुणस्थान को नहीं प्राप्त होता है ।। ३२ ।। ( इस प्रकार एक जीव की अपेक्षा छह आवलीप्रमाण ही सासादन- गुणस्थान का उत्कृष्ट काल है।)

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