Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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Naraine
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वारमपि दर्भैश्च कुशैव वेष्टयति, वेष्टयित्वा मृत्तिकालेपेन लिम्पति । लिखा उष्णे ददाति शुष्कं सत् तृतीयमपि = तृतीयवारमपि दर्भैश्च कुशैश्च वेष्टयति, वेष्टयित्वा मृत्तिकालेपेन लिम्पति । एवं खलु 'एएणुवारणं एतेनोपायेन, अन्तरामध्ये, वेष्टयन्, अन्तरा=मध्येन लेपयन, अन्तरा = मध्ये शोषयन, यावत् अष्टभिर्मृत्तिकालेपैः आलिम्पति=समन्ताल्लिप्तं करोति, 'अत्थाहं ' अस्तावे=स्ताघं यावतिजले नासिका न ब्रुडति तावत् स्तायं गाधं, स्ताघमिति नञ्समासः तस्मिन् अगाधे Sति गम्भीरे इत्यर्थः, अथवा ' अत्थाह' अयं देशीशब्दः अगाधार्थकः, आर्षत्वात् सप्तम्यर्थे प्रथमा, 'अंतारं ' अतारे तरीतुमशक्ये, 'अपोरिसियंसि अपौरुषिके = पुरुषः प्रमाणमस्येति पौरुषिकं, न पौरुषिकमित्यपौरुषिकं तस्मिन् पुरुषप्रमाणादघिके, पुरुषैरगाये ' उदगंसि ' उदके जले 'पक्विवेज्जा ' प्रक्षिपति ।
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कृतविकार रहित, ऐसी पूरी - ० कि जो फटी तुटीं नहिं है तुंबी को दर्भा से और कुशों से वेष्टित करता है, और वेष्टितकर फिरउसे मिट्टी के लेप से लपेट देता है - लपेट कर उसे धूप मे सुकाता है ( सुक्कं समाणं दोच्चापि दन्भेहिय कुसेहिय- वेढेइ, वेढित्ता मट्टियाले वेण लिंपइ, लिंपित्ता उहे सुक्कं समाणं तच्चपि दन्भेहिय कुसे हिय वेढेइ वेदित्ता महिया लेवेणं लिंप ) जब वह अच्छी तरह शुष्क हो जाती हैं तब दुबारा भी वह उसे दर्भ और कुशों से परि वेष्टित करता है और परिवेष्टित कर के फिर उस पर मिट्टी का लेप करता हैलेपकर पहिले की तरह फिर उसे धूप में सूखने के लिये रख देता है । सुख जाने पर उसे पुनः तृतीय बार दर्भ और कुशों से वेष्टित करता है । वेष्टित करके फिर उस पर मिट्टी का लेप करता है ( एवं. खलु एएण वाएणं अंतरा वेढेमाणे अंतरा लिपेमाणे अंतरा सुक्कवेमाणे जाव अहिं महियालेवेहिं आलिंप, अत्थाहमतारमपोरिसियंसि
રહિત વગર તૂટેલી પુંખીને દાભ તેમજ કુશથી વીંટી લે છે અને ખાદ્ય માટીથી તેની આસ પાસ લેપ કરે છે અને તેને सुवे छे. ( सुक्क समाण दोच्चपि दब्मेहिय कुसेहिय वेढेइ, वेढित्ता मट्टियाले वेण लिंपई, लिपित्ता उन्हे सुक्क समाणं तच्च पि दम्भेहिय कुसेहिय वेढेइ, वेढत्ता मट्टिया लेवेण लिंपइ ) न्यारे तुंजी सारी रीते सूाहा लय त्यारे ખીજી વખત પણ તેને દાભ અને કુશથી વીંટાળીને ફરી તેના ઉપર માટીને લેપ કરે છે. લેપ કર્યા બાદ તેને તાપમાં મૂકે છે. આમ સૂકાઇ ગયા બાદ श्री वसतं हाल भने डुशथी वीटाजीने भाटीनो से पुरे छे. ( एवं खलु एणुवाणं अंतरा वेढेमाणेअंतरा लिंपेमाणे अंतरा सुक्कवेमाणे जाव अट्ठहिं मट्टियालेवेहि आलिपर अत्थाहसतारमपोरिसियसि उदगंसि पक्खिवेज्जा ) मा
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ત્યાર
તાપમાં