Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 15
________________ स्वाध्याय-यज्ञ की कीमिया ... 157 स्वाध्याय-यज्ञ का क्या अर्थ है / स्वाध्याय अर्थात स्वयं का अध्ययन-स्वयं के द्वारा / दूसरे का अध्ययन बाहर से / आचरण और अंतस भिन्न-भिन्न / दूसरों के मंतव्यों को अलग कर देना / दमित वासनाओं और आवेगों को उभारना जरूरी / अकेलेपन का भय-स्वयं से मुलाकात का भय / सेंस डिप्राइवेशन का प्रयोग अव्यस्त होना / मनोविश्लेषण की उपयोगिता / स्वयं की झूठी प्रतिमाओं को त्यागना / स्वाध्याय की अग्नि में जलना / जानना ही मुक्ति है / जानना पर्याप्त है रूपांतरण के लिए / सब रोग–अज्ञान के ही कारण / निंदक नियरे राखिए / पश्चिम का महंगा मनोविश्लेषण / अधिक दमन-तो स्वाध्याय की जरूरत अधिक / बुराई को छिपाना पड़ता है / तथ्यों का नग्न साक्षात्कार / आत्मकथाएं पढ़ना-स्वाध्याय के लिए उपयोगी / गांधी की आत्मकथा / संत अगस्तीन का 'कंफेशंस' / पाप और पीड़ाओं से गुजरने वालों के अनुभव उपयोगी / उपनिषद कम उपयोगी / ईसाइयत में अपराध की स्वीकृति की कीमती परंपरा / भारत में पाप के स्वीकार का साहित्य-न के बराबर / दोस्तोवस्की के उपन्यास-क्राइम एंड पनिशमेंट; ब्रदर्स कर्माजोव / टालस्टाय के उपन्यास-वार एंड पीस; डेथ आफ इवान इलोविच / स्वाध्याय के साथ-साथ प्रभु-स्मरण जरूरी/ प्रभु-स्मरण के अभाव में विक्षिप्तता या निराशा का खतरा / भीतर नरक का साक्षात्कार और दिव्य संभावनाओं का स्मरण / पाप के मध्य भी परमात्मा की स्वीकृति / पश्चिम की आत्मघाती निराशा / अकेला मनोविश्लेषण खतरनाक / गहन अंधेरे में प्रकाश की संभावना का स्मरण / भारतीय नमस्कार-विधि-प्रत्येक में छिपे प्रभु का स्मरण / सुबह, दोपहर, रात-राम, राम, राम / सोने से पूर्व प्रभु-स्मरण / स्वाध्याय-यज्ञ-स्वयं के गलत को जानना और प्रभु-स्मरण। 12 अंतर्वाणी-विद्या ... 171 स्वधर्मरूपी-यज्ञ और योग-यज्ञ क्या है? / खिला हुआ व्यक्तित्व नैवेद्य बन जाता है / विषाद-संभावनाओं के अप्रगट रह जाने से / गुरुत्वाकर्षण और ग्रेस / विषाद और अनुग्रह / अन्यथा होने का पागलपन / स्वधर्म को कैसे पहचानें? / जीवन में शांति और आनंद बढ़े, तो दिशा ठीक है । स्वीकार-भाव और संतोष बढ़े / शांत, एकांत में निजता से पहचान / प्रतिदिन एक घंटे स्वयं में डूबना / इनर वाइस-अंतर्वाणी-को सुनना / कृष्णमूर्ति की सारी शिक्षा स्वाध्याय-यज्ञ की ही व्याख्या है / मेहरबाबा का पूरा जीवन-अंतर्वाणी सुनने का प्रयोग है / इस युग में योग के भाष्य हैं-जॉर्ज गुरजिएफ / आदमी एक अराजक भीड़ है / इंद्रियां मालिक बन गई हैं / योग अर्थात अखंडता / योग अर्थात भीतर सोए हुए मालिक को जगाना / गुरजिएफ का 'स्टॉप एक्सरसाइज' प्रयोग / नींद पर चोट / हठयोग, मंत्रयोग, राजयोग / ओम ध्वनि की नाभि पर चोट / सूफियों का मंत्र-अल्लाह / 'हू' की तीव्र चोट / त्राटक का उपयोग / परमात्मा से जुड़ने के अनेक द्वार / प्राण-योग / श्वास सेतु है-शरीर और आत्मा के बीच / श्वास और मनोदशा का संबंध / ब्लड प्रेशर की तरह-ब्रेथ प्रेशर भी / धीमी व गहरी श्वास के साथ क्रोध असंभव / कामवासना में श्वास का तेज और अस्तव्यस्त हो जाना / ध्यान में श्वास का सहज ठहराव / प्राणायाम का ध्यान के लिए उपयोग / श्वास का ठहरना-विचार का ठहरना / रामकृष्ण की समाधि / संसार और मोक्ष के बीच विचार की पतली दीवार / विचारशून्यता और श्वासशून्यता के अंतराल / प्राण क्या है और अपान क्या है? / भीतर की श्वास को बाहर के विराट प्राण-जगत में समर्पित करना / बाहर के समस्त प्राण को भीतर गिरा लेना / बूंद गिरे सागर में या सागर गिरे बूंद में / नियमित, संयमित आहार करने वाले योगीजन / आहार-मुंह से, आंख से, कान से, स्पर्श से / प्राण को उत्तेजित करने वाले आहार न लेना / प्राण का प्राण में ही समाहित हो जाना / मानसिक कचरा इकट्ठा करना / मानसिक कब्जियत / सभी इंद्रियों के लिए सम्यक आहार / जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ।

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