________________
काम-क्रोध से मुक्ति ... 413
अर्जुन खोजता था युद्ध से पलायन-कृष्ण देने लगे अंतर-क्रांति / जीवन ऊर्जा को नई दिशा देना / अशांति की विधि / सब कृत्य और विचार हमें बदलते हैं / जैसा बोते हैं, वैसा ही काटते हैं / अशांति-परमात्मा से टूटना है / स्वयं और दसरे के बीच समता / स्वयं के प्रति भी तटस्थता / सम अर्थात निर्द्वद्व, चुनावरहित / काम और क्रोध की सतत अंतर्धारा / अपनी गलत प्रतिमा निर्मित करना / आदमी रेशनल एनिमल कम–रेशनलाइजिंग एनिमल ज्यादा है / क्रोध के लिए कारण खोजना / पहले स्वीकार-फिर रूपांतरण / काम-क्रोध से मुक्ति की विधि / भ्रू-मध्य-दृष्टि और प्राण-अपान की समता / सात इंद्रियां-बहिर्जगत के द्वार / कान के पास सातवीं इंद्रिय-संतुलन की / छठवीं इंद्रिय-अंतःकरण, हृदय / सात आंतरिक इंद्रियां-सात चक्र / चक्र हैं—अंतर्जगत के द्वार / भ्र-मध्य के पास का आज्ञा-चक्र-संकल्प का स्रोत / इंद्रियां सक्रिय होती हैं-ध्यान से जुड़ने पर / आज्ञा-चक्र पर ध्यान-क्षत्रिय के लिए / चक्रों का जीवंत हो उठना / स्त्रैण चित्त के लिए हृदय पर ध्यान उचित / रामकृष्ण के स्तनों का बढ़ना और मासिक-धर्म का आना / श्वास-प्रश्वास के सम हुए क्षण-ध्यानमय / गर्भ में बच्चा सम होता है / जन्म-क्षण, मृत्यु-क्षण और समाधि-क्षण में श्वास की समता / न बाहर-न भीतर / न्यूट्रल गियर से रूपांतरण / कामी, क्रोधी बड़े ऊर्जावान / ऊर्जा का रूपांतरण / क्रोध का उपयोग-क्रोध के बाहर रह कर / ऋषियों द्वारा वीर्य-दान / निर्वासना हुए व्यक्ति से पवित्रतम वीर्य उपलब्ध / आज्ञा-चक्र के सक्रिय होने पर-इंद्रियजय घटित / कृष्ण के 'मैं' में समस्त 'तू' सम्मिलित हैं / कृष्ण अर्जुन के सारथी!/ अहंकारी सारथी न बनना चाहेगा / अर्जुन को कृष्ण की अहंशून्यता का बोध है / मामेकं शरणं व्रज-मुझ एक की शरण आ / स्वयं के परमात्मा होने की घोषणा / अहंकार को चोट लगाना / कृष्णमूर्ति का श्रोतावर्ग-बहुत अहंकारी / कृष्ण के समय अहंकार घना नहीं था / समर्पण मुक्ति है / ऊर्जा समर्पण बनती है / गीता का हर अध्याय अपने में पूर्ण है / पहले समझें—फिर करें-उसे जीवन में उतारें।