Book Title: Geetashastrasya Pratikandam
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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15251526tteekhethett5662525 श्रीगणेशायनमः // ऑनमः परमहंसास्वादितचरणकमलचिन्मकरन्दाय भकजनमानसनिवासाय श्रीमद्रामचन्द्राय // भगवत्पादभा. प्यार्थमालोच्यातिप्रयत्नतः / प्रायः प्रत्यक्षरं कुर्वे गीतागूढार्थदीपिकाम् // 1 // सहेतुकस्य संसारस्यात्यन्तोपरमात्मकम् // परं निश्रेयसं गीताशास्त्रस्योक्त प्रयोजनम् // 2 // सच्चिदानन्दरूपं तत्पूर्ण विष्णोः परं पदम् / यत्याप्तये समारब्धावेदाः काण्डत्रयात्मकाः // 3 // कर्मोपास्तिस्तथा ज्ञानमिति काण्डवयं क्रमात् // तपाष्टादशाध्यायैर्गीता काण्डत्रयात्मिका // 4 // एकमेकेन षटकेन काण्डमत्रोपलक्षयेत् // कर्मनिधाज्ञाननिटे कथिते प्रथमान्त्ययोः // 5 // यतः समुच्चयोनास्ति तयोरतिविरोधतः // भगवद्भक्तिनिष्ठा तु मध्यमे परिकीर्तिता // 6 // उभयानुगता सा हि सर्वविन्नापनोदिनी // कर्ममिश्रा च शद्धा च ज्ञानमिश्रा च सा त्रिधा // 7 // तत्र तु प्रथमे काण्डे कर्म तत्यागवर्त्मना / स्वंपदार्थोविशुद्धात्मा सोपपत्तिनिरूप्यते // 8 // द्वितीये भगवद्भक्तिनिष्ठावर्णनवर्त्मना / भगवान् परमानन्दस्तत्पदार्थोवधार्यते // 9 // तृतीये तु तयोरैक्यं वाक्यार्थीवर्ण्यते स्फुटम् // एवमप्यत्र काण्डानां सम्बन्धोस्ति परस्परम् // 10 // प्रत्यध्यायं विशेषस्तु तत्र तत्रैव वक्ष्यते॥ मुक्तिस धनपर्वेदं शास्त्रार्थत्वेन कथ्यते // 11 // निष्कामकर्मानुष्ठानं त्यागाकाम्यनिषिद्धयोः / तत्रापि परमोधर्मोजपस्तुत्यादिकं हरेः // 12 // क्षीणपापस्य चित्तस्य विवेके योग्यता यदा || नित्यानित्यविवेकस्तु जायते सुदृढस्तदा // 13 // इहामुत्रार्थवैराग्यं वशीकाराभिधं क्रमात्॥ ततः शमादिसम्पत्त्या संन्यासोनिष्ठितोभवेत् // 14 // एवं सर्वपरित्यागान्मुमुक्षा जायते दृहा // ततोगुरूपसदनमुपदेशग्रहस्ततः // 15 // ततः सन्देहहानाय वेदान्तश्रवणादिकम् // सर्वमुत्तरमीमांसाशास्त्रमत्रोपयुज्यते / / 16 / / ततस्तत्परिपाकेण निदिध्यासननिष्ठता / योगशास्त्र तु सम्पूर्णमुपक्षीणं भवेदिह // 17 // क्षीणदोषे ततश्चित्ते वाफ्यात्तत्त्वमतिर्भवेत् // साक्षात्कारोनिर्विकल्पः शद्बादेवोपजायते // 18 // अवि द्याधिनिवृत्तिस्तु तत्त्वज्ञानोदये भवेत् / / ततआवरणे क्षीणे क्षीयते भ्रमसंशयौ // 19 // अनारब्धानि कर्माणि नश्यन्त्येव समन्ततः॥ नवागामीनि जायन्ते तत्वज्ञानप्रभावतः // २०॥पारग्धकर्मविक्षेपासना तु न नश्यति // सा सर्वतोबलवता संयमेनोपशाम्यति // 21 // संयमोधारणा ध्यानं समाधिरिति यत्त्रिकम् // यमादिपञ्चकं पूर्व तदर्थमुपयुज्यते // 22 // ईश्वरप्रणिधानात्तु समाधिः सिध्यति द्रुतं // ततोभवेन्मनोनाशोवासनाक्षयएव च // 23 // तत्त्वज्ञानं मनोनाशोवासनाक्षयइत्यपि // युगपत्रितयाभ्यासाज्जीवन्मुक्तिर्दढा भवेत् // 24 // विइसन्यासकथनमेतदर्थ श्रुतौ कृतम् // प्रागसिद्धोयएवांशोयत्रः स्यात्तस्य साधने // 25 // निरुद्ध चेतसि पुरा सविकल्पसमाधिना // For Private and Personal Use Only

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