Book Title: Geetashastrasya Pratikandam
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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ.१. MERTNERRRRRR5055516625 मध्ये रथस्थापनप्रयोजनमाह योकामान् नत्वस्माभिःसह सन्धिकामान् अवास्थतान् नतु भयात्प्रचलितान एनान्भीष्मद्रोणादीन् | यावद्गत्वाहं निरीक्षितुं क्षमास्यां तावत्प्रदेशे रथं स्थापयेत्त्यर्थः यावदिति कालपरं वा ननु त्वं योद्धा ननु युद्धप्रेक्षकः अतस्तव किमेषां दर्शनेनेत्यत्राह कैरिति अस्मिन् रणसमुद्यमे बन्धनामेव परस्परं युद्धोद्योगे मया कैःसह योद्धव्यं मत्कर्तकयुद्धप्रतियोगिनः के कैर्मयासह योद्धव्यं किंकर्तृक युद्धप्रतियोग्यहमिति च महदिदं कौतुकमेतज्ज्ञानमेव मध्ये रथस्थापनप्रयोजनमित्यर्थः // 22 // ननु बन्धवएव एते परस्परं सन्धि कारयिष्यन्तीति कुतोयुद्धमित्याशङ्कयाह यएते भीष्मद्रोणादयः धार्तराष्ट्रस्य दुर्योधनस्य दुर्बुद्धेः यावदेतानिरीक्षेहं योदुकामानवस्थितान् // कैर्मयासह योडव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे // 22 // | योत्स्यमानानवेक्षेहं यएतेत्र समागताः // धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेयुद्धे प्रियचिकीर्षवः // 23 // // संजयउवाच // एवमुक्तोषीकेशोगुडाकेशेन भारत // सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् // 24 // भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषांच महीक्षिताम् // उवाच पार्थ पश्यैतान् समवेतान्कुरूनिति // 25 // | स्वरक्षणोपायमजानतः प्रियचिकीर्षवोयुद्धे नतु दुर्बुद्ध्यपनयनादेतान् योत्स्यमानानहमवेक्षे उपलभे नतु सन्धिकामान् अतोयुद्धाय सत्यतियोग्यवलोकनमुचितमेवेतिभावः // 23 // एवमर्जुनेन प्रेरितोभगवानहिंसारूपं धर्ममाश्रित्य प्रायशोयुद्धात्तं व्यावर्तयिष्यतीति धृतराष्ट्राभिप्रायमाशंक्य तन्निराचिकीर्षुः संजयोधृतराष्ट्रंप्रत्युक्तवानित्याह वैशम्पायनः हेभारत धृतराष्ट्र भरतवंशमर्यादामनुसन्धायापि द्रोहं परित्यज ज्ञातीनामिति सम्बोधनाभिप्रायः गुडाकायानिद्रायाईशेन जितनिद्रतया सर्वत्र सावधानेन अर्जुननवमुक्तोभगवान् अयं मट्टत्योपि सार गं नियोजयतीति दोषमासज्य नाकुप्यत् नवा तं युद्धात न्यर्वतयत् किन्तु सेनयोरुभयोर्मध्ये भीष्मद्रोणप्रमुखतः प्रमुखे सम्मुखे सर्वेषां महीक्षितां च सम्मुखे आद्यादित्वात्सार्वविभक्तिनास्तसिः चकारेण समासनिविष्टोपि प्रमुखतः शब्दआकृष्यते भीष्मद्रोणयोः // 5 // For Private and Personal Use Only

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