Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 11
________________ ( } 1 न्यायनीति, सभ्यता, संस्कृति का विकास करना चाहता हूँ। मेरा यह स्पष्ट मत है कि साहित्य साहित्य के लिए नहीं अपितु जीवन के लिए है । जो साहित्य जीवनोत्थान की पवित्र प्रेरणा नहीं देता वह साहित्य नहीं है वह तो एक प्रकार का कूड़ा-कचरा है । मैंने पूर्व भी इस दृष्टि से कथा - साहित्य की विधा में अनेक पुस्तकें लिखी थीं और ये पुस्तकें भी इसी दृष्टि से लिखी गई है । अपने इस लक्ष्य की पूर्ति के प्रेरणा स्रोत, मेरे गुरुदेव अध्यात्मयोगी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी महाराज के असीम उपकार को मैं ससीम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता । श्री रमेश मुनि जी, श्री राजेन्द्र मुनि जी और श्री दिनेश मुनि जी प्रभृति मुनिवृन्द की सेवा सुश्रूषा को भी भुलाया नहीं जा सकता जिनके हार्दिक सहयोग से ही साहित्यिक कार्य करने में सुविधा रही है, मैं उन्हें साधुवाद प्रदान करता हूँ और आशा करता हूँ कि भविष्य में भी उनका इसी प्रकार मधुर सहयोग सदा मिलता रहेगा। श्री 'सरस' जी ने प्रेस की दृष्टि से पुस्तकों को अधिक से अधिक सुन्दर बनाने का प्रयास किया है वह भी सदा स्मृतिपटल पर चमकता रहेगा । २६-४-७६ - देवेन्द्र मुनि जैन स्थानक हैदराबाद (आंध्र ) 1 Jain Education Internationalte & Personal Usev@rjainelibrary.org

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