Book Title: Epigraphia Indica Vol 25
Author(s): Sten Konow, F W Thomas
Publisher: Archaeological Survey of India

Previous | Next

Page 375
________________ 812 EPIGRAPHIA INDICA. [VoL.XXV. ))) 4 खलितानुभूतयः ।[५॥*] तदन्वये शिष्यपरम्परायाः क्रमादि वंश[:] . - - -- - - - - - - - - - - - - - -- - [६॥*] ~~-- दिशा चक्र - vIyyyyu--vyyuyucu 6 श. [७॥*] शिष्यं विमलशिवाभिधमाधायासी पदे खोये। . . . . . ........ [=*] vyuyu -yyyyyu -- । यत्कोतिष[सभा ?] -~ ~ -~ [en*] | • वास्तुशिवाभिधानः श्रेयःप्रकर्षम्परमादधानः । यश्चेदिपानां विषये] - - - - -U--uw-u-- [ 011*] vvvvv- yuyuu-Uvivuvuu--yyyyyu ~~[११॥*] ~शिवः शिष्यः [पुरुषार्थाय] सम्य 7 दम् । गुणानां च धनानां च परोपक्वतये पर(रा)म् ।[१२॥"] शासन ---Vuyyuu-Ulyvyyu--vvy vyu-uy [281*] vvvyu--vyyyy -UVIVUuuu-- 8 गुणगणानिव ॥[१४] प्रीतिः पाचे रतिस्तीर्थे स्थिति: पथि मी सताम् । भक्ति भवेभवत्तस्य समस्य ~ ~- ~~ [१५॥*] . . . . . . . . . . . . . . . . [भिन्नः] पुरुषशिव: पुरुषोत्त9 मोस्य शिष्यः [१६॥*] यस्माद्यशःकर्णनराधिपस्य प्रादुर्व(ब)भूवाभ्युदयप्रगल्भा । धर्मार्थकामेषु तथा समृश्चिर्यथा गिरा पत्युरमर्त्यभर्तुः ॥[१७॥*] [यक्ती] श्रीगयकरण देवनृपतेः - --- - - - - -- - --- ----- बन्विताः । 10 शिथः शनिशिवोस्य कीर्तिपटलैः प्रज्ञाप्रकर्षरिवाकार्षीहिग्वलय तथातिविशदं विद्या. समुद्रं यथा ॥[१८॥*] गयकएर्णनृपप्रताप - - - - हेरिनराधिपे व(ब)लात् । - - - - - - - - - -- - -- - [१॥*] सुमनोगण[ने क * About 18 aksharas aro gone here. ..About 30 akshares are lost here.

Loading...

Page Navigation
1 ... 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448