Book Title: Epigraphia Indica Vol 24
Author(s): Hirananda Shastri
Publisher: Archaeological Survey of India

View full book text
Previous | Next

Page 398
________________ No. 44.] FIRST AND THIRD SLABS OF KUMBHALGARH INSCRIPTION: V. S. 1517. 323 5 सिंचन[धर्म] प्रा[[स] सा[युष्य"][[महोदयम्यI हारीतराशरसमप्र ]'सादादवाप बच्यो नवरा[ज्य] लक्ष्मीं (क्ष्मीम् ) ॥१२ [५] बप्पे शि[वे] लयमुपे[ युषि ] नीलकंठ[ प्रौढप्र*]-" 6 [सादम ] प [ सा] दमवाप्य त [स्य ] ॥ ( 1 ) [ वंशो ] [ जगत्त्रय *] [प][वित्रचरित्रपात्रमद्याप्यखंड*]-" म[ खिलां] जगतीं प्र [शास्ति ] ॥१[२६] * इति म[हारा][ल] श्रीबापावर्णनं ॥ ॥ अथ राउली(गुद*] 11 तस्यात्मजः नृप]तिर्गु[[हि][लाभिधानो धर्माच्छशास 7 [त्तव]र्णनं [ स वसुधां मधु*] [जिनभाष: (1) यमारी गुहिलवर्णनया (प्रसिद गोहिय[f][भव] राजगणोत्र जातिं (तिम् ) ॥१ [२७] य" ] 8 [च] नंदपु[२] पूर्व गुड[द]त्ता[भिधो दिन] (1) स लेभि ॥ १२८] [[]]सिधरचिनायोत्तुंगरंग' [प्रतापस्तरुणतरणिरे [ष ला]पयन्बेरिचंद्रान् ॥ ( 1 ) व्यचरद [तिविचि*]-" [ ] ततं यत्पृथि [ व्या] मदद [रिवष्टौपद्मिनी] [नां सुखानं (खम्)"] [१२८* []] [[स]तशत्रुबंधुः प्रतापसंततिपद्मबंधुः ॥ ( 1 ) [गां] भौर्य [इ] - [दू] रोश[त] सप्तसिंधुर्यशोभर [य] 10 [सिंधु ॥१३० य [स्मा] दभू [४] रितर प्रता] पो [भूपालमो [लि * ] [i] रघुव[][or rer][स]हो गुहिलान्ववाय: ॥१[३] १ [गुहप्रदाना ] हुह दत्तनामा वंशो[यमुक्तो 11 गुहिल]च केचित् ॥ ( 1 ) स एव गांभीर्य [वाविभर्ति रत्नाकर"] [०१२२] [ला)टोजनेन मधुरखरमीत (के) न पीनस्तनेन रतिकालविचक्षणे ]न (1) साईं विनोदितदिनी [ग —— .. — 12 ति]मंथरेण लाटीविनोद इति गुडदत्तवर्धन" ] ॥ ॥ निजतटणी rimga-. -- तस्य ब[भूव स्]नु: [ ॥ १३३] [इति राउलीराउल श्रीषु (ख) म्प्राणवर्णनं ॥ ह[र्षा] द्योतोल[य] त्वं कांचनिन प्रा 1 Text within these brackets is restored from B where the verse is no. 11. 2 Metre: Upajati. s Text within these brackets is restored from D and E where the verse is no. 30 and 7 respectively. 4 Metre : Vasantatilakà. • Metre: Malini. # Text within these brackets is restored from B and D where the verse is no. 13 and 17 respectively. The difference in reading in the latter is in Sriman-abhat-sa. • Metre : Anushtubh. Better omit the risarga and read ramga-pratapas=. ● Text within these brackets is restored from D, verse no. 18 where the difference in reading is in Etruriga

Loading...

Page Navigation
1 ... 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472