Book Title: Ek Sadhe Sab Sadhe
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 12
________________ इक साधे सब सधे यद्यपि मनुष्य अंधकार से घिरा हुआ है, फिर भी उसे अंधकार दिखाई नहीं देता और जिस दिन अंधकार का स्वरूप दिखाई दे जाए उसी दिन से प्रकाश की यात्रा प्रारम्भ हो जाती है। अभी हमारी पहचान जिस प्रकाश से है वह अत्यल्प है, अंधेरी रात में तारे की तरह । दीये के नीचे जितना अंधकार होता है बस उतने से प्रकाश से हम परिचित हैं। पिछले पाँच सौ वर्षों में विश्व ने विकास के नए आयाम देखे हैं, बहुतेरी नई दिशाएँ ढूँढी हैं, लेकिन विज्ञान के विकास के सोपान उस अंधकार की पहचान नहीं करा पाए जिसमें हमारी मानवीय समस्याएँ उलझी रहती हैं। हमने ढेर सारा बाह्य प्रकाश पाया है, पूरा संसार ही रोशनी से भरा है, लेकिन इस भरे हुए प्रकाश के मध्य मनुष्य जब अपने अंतर्मन की ओर आँख उठाता है तो पाता है कि कितना घुप्प अंधकार है। दीपावली पर दीयों से सजी हुई मुंडेर पर रोशनी के मध्य मनुष्य एक धब्बा देखता है, अंधकार का धब्बा, जो उसके अपने हृदय में है। बाहर की रोशनी उसके लिए एक व्यंग्य बन जाती है, जब वह अपने अन्त:करण को तमसावृत पाता है। व्यक्ति योग, कुण्डलिनी और चैतन्य-जागरण की बात कहता है, पर मैं प्रारम्भ करूंगा इस बात से कि हमें अंधकार का बोध तो हो । जब तक हमें बोध नहीं होगा कि मैं दुखी हूँ, तब तक बुद्ध के चार आर्य सत्य अपनी प्रासंगिकता कैसे रख पाएंगे? जब तक मनुष्य यह स्वीकार नहीं करता कि वह क्रोध में है, तब तक क्रोध-निवारण के मार्ग कैसे ढूँढ सकेगा? जब तुम स्वीकार करते हो कि तुम बुरे आदमी हो, तभी शायद अच्छाई की कोई किरण प्रगट हो सकती है। धर्म का आरम्भ ही अज्ञान के ज्ञान से होता है । अध्यात्म के बीज का अंकुरण अपने अनाड़ीपन के बोध से शुरू होता है। पिछले पचास वर्षों में बुद्धि और विज्ञान का अत्यधिक विकास हुआ है, फिर भी मनुष्य के पास अंधकार और अज्ञान है इसलिए वह व्यथित और पीड़ित है और मार्ग की तलाश में है । वह भटक रहा है कि मेरे लिए श्रेष्ठ मार्ग क्या हो सकता है ? जिन धर्मों का हम अनुसरण करते हैं, उन्होंने मार्ग तो बहुत बताए, लेकिन यह बात स्मरण रखनी चाहिए कि हम उस युग में पैदा नहीं हुए हैं । या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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