Book Title: Ek Futkal Patra Antargat Shabdayadi
Author(s): Kantilal B Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ डिसेम्बर २००८ संस्कृतीकरण रूपे पण जोवा मळे छे. छतां बिनसंशयात्मक लागेला के अन्य आधारग्रन्थोमांथी सांपडता प्रमाणभूत संस्कृत शब्दोने व्युत्पत्तिस्थान तरीके दर्शाव्या छे. अहीं में शब्दयादीना वर्तमान गुजराती अर्थ आपवामां मुख्यतया 'म.गु.श.'नो आधार लीधो छे. ते उपरांत क्वचित् ‘सार्थ गुजराती जोडणीकोश' तेमज हिन्दी शब्दकोशनी पण सहाय लीधी छे. शक्य बन्युं त्यां व्युत्पत्ति आपी छे. अने जरूरी लाग्युं त्यां टिप्पणी (टि.) मूकी छे. पत्रनी शब्दयादीनो क्रम यथावत् राख्यो छे. यादीमां नोंधायेला संस्कृत पर्यायो प्रत्येक शब्दने छेडे चोरस कौंस [] मां मूक्या छे. मूळ ग्रन्थमाथी शब्दयादीनो उतारो करवामां केटलाक शब्दो खोटी रीते उतारायानुं पण मालूम पड्युं छे. क्यांक मूळ शब्द अने संस्कृत पर्याय भेगा लखायेला छे तो क्यांक एक शब्दनो अक्षर बीजा शब्दमां सरकी गयो छे. शक्य बन्युं त्यां आवां स्थानोए शुद्धि करी लीधी छे छतां अर्थ ज्यां मळ्यो नथी के संस्कत पर्याय साथे मेळमा लाग्यो नथी के अर्थ अपाया छतां संशय रह्यो छे त्यां प्रश्नार्थ (?) को छे. होउ = थयु (सं. भू परथी) [एवं हवइ] अथ = हवे, आरंभ (टि. 'अथ' संस्कृत शब्द छे.) प्रत्युत = किंवा, बीजी रीते, ऊलटी रीते (टि. 'प्रत्युत' संस्कृत शब्द छे.) पूठिई = पाछळ, - नी पछी [अनु] सामहु - सामुं(सं. संमुखकम् > सामहउ) [अभिमुख] डावउ = डाबो (दे०) [वाम] पाधरउ = सोधो, सरळ, भलोभोळो (सं. प्राध्वर; दे. पद्धर)[ऋजु, सरल] हेठि = नीचे [अधः] ऊपरि = उपर [उपरि] आडउ = आडो, विघ्नरूप, अडपलो [तिर्यक्] त्रीच्छउ = तीरछो, वांको, आडो, कतरातो [तिरश्चीनः] (सं. तिरश्चीन > प्रा. तिरिच्छ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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