Book Title: Ek Futkal Patra Antargat Shabdayadi
Author(s): Kantilal B Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ एक फुटकळ पत्र - अन्तर्गत शब्दयादी अनुसन्धान ४६ आचार्य श्री शीलचन्द्रसूरिजी महाराजने प्राप्त थयेल केटलांक फूटकळ पत्रो पैकीना एक पत्रमां कोई अभ्यासु जीवे केटलाक अपभ्रंश/जूनी गुजरातीना शब्द संगृहीत कर्या छे. ए साहित्यना स्वाध्याय - वांचन माटे एमने ए उपयोगी जणाया हो. एमणे करेली शब्दयादीमां प्रत्येक शब्दनी सामे संस्कृत अर्थो आपेला छे. कान्तिभाई बी. शाह पू. महाराजश्रीए संस्कृतार्थवाळी आ शब्दयादीमां वर्तमान गुजरातीमां अर्थ अने जरूरी लागे त्यां टिप्पण आपवानुं मने सोंप्युं. शब्दोना चोकसाईभर्या गुजराती अर्थो मेळववा माटे, जयन्त कोठारी सम्पादित 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश' मां पत्र - अन्तर्गत यादीमांना शब्दो क्रमशः जोवा मांड्या. त्यारे ख्याल आव्यो के आमांना मोटा भागना शब्दो 'म. गु.श. 'मां नोंधायेला हता अने ते बधां स्थानोए 'उक्तिरत्नाकर' ग्रन्थनो आधार लेवायो हतो. 'उक्तिरत्नाकर' ग्रंथ श्रीसाधुसुन्दरगणीए रच्यो छे. कर्ताना सर्जनकाल ई. १६२४ - १६२७ना गाळामां एनी रचना थई छे. ई. १९५७मां श्रीजिनविजय मुनिए आ ग्रन्थनुं सम्पादन कर्तुं छे. आ सम्पादनमां 'उक्तिरत्नाकर' उपरांत बे अज्ञातकर्तृक औक्तिको पण एमां सामेल कराया छे. आ कृतिओमां जूनी गुजराती भाषाना शब्दोनी समज माटे संस्कृत पर्यायो अपायेला छे. फूटकळ पत्रनी प्रस्तुत शब्दयादीमांना संस्कृत पर्यायो अने 'म.गु.श. 'मां नोंधायेला 'उक्तिरत्नाकर' ना संस्कृत पर्यायोनी समानता परथी ए तो निश्चित थयुं के आ शब्दयादी मोटे भागे 'उक्तिरत्नाकर'ना सम्पादन ग्रन्थमांथी करवामां आवी छे. जयन्त कोठारी 'उक्तिरत्नाकर' ग्रन्थनो 'म.गु.श. 'मां उपयोग करती वखते, गुजराती अर्थ आपवामां, ते ग्रन्थमां अपायेला संस्कृत पर्यायोनो आधार लीधो छे खरो, पण बधां स्थानोमां व्युत्पत्ति तरीके ए संस्कृत पर्यायोनी प्रमाणभूतता स्वीकारी नथी. केटलाक संस्कृत पर्यायो तो मूळ शब्दना कृत्रिम Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २००८ संस्कृतीकरण रूपे पण जोवा मळे छे. छतां बिनसंशयात्मक लागेला के अन्य आधारग्रन्थोमांथी सांपडता प्रमाणभूत संस्कृत शब्दोने व्युत्पत्तिस्थान तरीके दर्शाव्या छे. अहीं में शब्दयादीना वर्तमान गुजराती अर्थ आपवामां मुख्यतया 'म.गु.श.'नो आधार लीधो छे. ते उपरांत क्वचित् ‘सार्थ गुजराती जोडणीकोश' तेमज हिन्दी शब्दकोशनी पण सहाय लीधी छे. शक्य बन्युं त्यां व्युत्पत्ति आपी छे. अने जरूरी लाग्युं त्यां टिप्पणी (टि.) मूकी छे. पत्रनी शब्दयादीनो क्रम यथावत् राख्यो छे. यादीमां नोंधायेला संस्कृत पर्यायो प्रत्येक शब्दने छेडे चोरस कौंस [] मां मूक्या छे. मूळ ग्रन्थमाथी शब्दयादीनो उतारो करवामां केटलाक शब्दो खोटी रीते उतारायानुं पण मालूम पड्युं छे. क्यांक मूळ शब्द अने संस्कृत पर्याय भेगा लखायेला छे तो क्यांक एक शब्दनो अक्षर बीजा शब्दमां सरकी गयो छे. शक्य बन्युं त्यां आवां स्थानोए शुद्धि करी लीधी छे छतां अर्थ ज्यां मळ्यो नथी के संस्कत पर्याय साथे मेळमा लाग्यो नथी के अर्थ अपाया छतां संशय रह्यो छे त्यां प्रश्नार्थ (?) को छे. होउ = थयु (सं. भू परथी) [एवं हवइ] अथ = हवे, आरंभ (टि. 'अथ' संस्कृत शब्द छे.) प्रत्युत = किंवा, बीजी रीते, ऊलटी रीते (टि. 'प्रत्युत' संस्कृत शब्द छे.) पूठिई = पाछळ, - नी पछी [अनु] सामहु - सामुं(सं. संमुखकम् > सामहउ) [अभिमुख] डावउ = डाबो (दे०) [वाम] पाधरउ = सोधो, सरळ, भलोभोळो (सं. प्राध्वर; दे. पद्धर)[ऋजु, सरल] हेठि = नीचे [अधः] ऊपरि = उपर [उपरि] आडउ = आडो, विघ्नरूप, अडपलो [तिर्यक्] त्रीच्छउ = तीरछो, वांको, आडो, कतरातो [तिरश्चीनः] (सं. तिरश्चीन > प्रा. तिरिच्छ) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ४६ आगलि = आगळ, अग्रस्थाने, समक्ष, पहेला, हवे पछी (सं. अग्र + ल) __ [अग्रे, पुरः] पच्छिलिउ = पाछलो, पाछळनो (सं. पश्च > पच्छाल) [पाश्चात्त्यः] सरीखउ = - ना जेवो, सरखो (सं. सदृक्षः) [सदृक्] समान = - ना जेवू, सर. [अतिसउल] (?) तादृक्षः = तेना जेवू, आबेहूब [तादृशः] अनेसउ = अनोखो (सं. अन्यादृशः) [अन्यसदृक्, अन्यसदृशः, अन्यसदृक्षः] तूं सरीखऊ = तारा जेवो [त्वादृशः] मूं सरीखउ = मारा जेवो [मादृशः] तुम्ह सरीखउ = तमारा जेवो [युष्मादृशः] अम्ह सरीखउ = अमारा जेवो [अस्मादृशः] अरहउ = नजीक, अहीं, आगळ, आम (सं. आरात्) [अर्वाक्] परहउ = दूर, तहीं, पाछळ, पछी तेम (सं. परात् / परस्मिन्) [पराक्] (टि. जूनी गुज.मां 'अरहउ-परहउ' अने अर्वा. गुज.मां 'अपर' एम सामासिक शब्दप्रयोग वधु प्रचलित छे. जेनो अहीतहीं, आमतेम, नजीकदूर, आगळपाछळ - एवा अर्थसंदर्भे वपराश छे. 'ओ' - नजीक ए शब्द साथे अरहउ > अरुनुं उच्चारसाम्य जोई शकाशे.) पारवलि (?) - पार पामेलो, पारंगत, भणेलो (?) [पठितः] सर्वतो = सर्व प्रकारे, बधी बाजुए, चोतरफ (सं. सर्वतः) [विश्वक्] समन्तात् = सर्वत्र [समन्ततः] उगउमुगउ = ऊगोमूगो [अवाङ्मूकः] (टि. वर्तमानमां आवो शब्दप्रयोग प्रचलित नथी. 'म.गु.श.'ना , सम्पादक आ शब्दने द्विरुक्त प्रयोग गणे छे. अहीं अपायेलो संस्कृत पर्याय व्युत्पत्ति तरीके अस्वीकार्य छे.) झलझांखसउं = भळभांखळु, मळसकुं [चलद्ध्वाङ्क्षम्] Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २००८ ३१ ऊंधाधलङ = ऊंधांधळं, झांखु, चूंखडु, चूंचळु, मंद दृष्टिवाळु [उद्वलिकम्] सूगामणउं = सूग उपजावनालं, घृणास्पद (सं. 'शूक' परथी.) [सूकाजनकम्] अहिवा = विधवा (सं. अधवा) [अविधवा] सूहव = सौभाग्यवती, सधवा स्त्री (सं. सुधवा) [सुधव] उत्तरिण्यु = ऋणमुक्त (हिं. उतरिन) [उत्तारितऋणम्] पद् = जामीनगीरी आपनार, जामीन, जामीनदार [प्रतिभू] (सं. प्रतिभूः > पडहू > पढू) पडूचउं = जामीनगीरीमां मूकेली वस्तु [प्रतिभाव्यम्] ऊपरियामणउं = व्याकुलता, खेद, चिंता [उत्कलिकाकुलं रणरणकं वा] उल्यु = ओल्युं, पेखें [अर्वाचीन] (?) पयलउ = पेलो, पेखें [पराचीनउ] (?) विलखउ = उदास, करमाई गयेखें, फिकुं (सं. विलक्ष) [विलक्षः] डहरवार = ? [जयद्रथवेला] (?) (टि. 'म.गु.श.'मां डहर = खाबोचियुं (सं. दहरः) मळे छे.) तांगलिणी = मळविसर्जन करवू ते. [तनुगमनिका] (टि. 'म.गु.श.'मां 'तांगणी' छे.) गोईगोसली = ? [गोप्यशिलाका] (टि. 'म.गु.श.'मां अर्वा. गुज. अर्थ अंगे प्रश्नार्थ छे.) ऊकरडी = नानो ऊकरडो, विवाह प्रसंगे कचरो पूंजो [अवकरोत्करिता] नाखवानी जगा. (दे. उक्करडी) पुञ्जो = ढगलो (सं. पुञ्ज) [अवकरः] चउकीवटु = बाजोठ, बेसवानी पाट (सं. चतुष्कपट्ट) [चतुष्कपट्टः] वटवालनउं = वोळावियापणुं [वर्मपालनं] बेहडउं = बेडु [द्विघटम्] गूढउं = छार्नु, घेरुं, न समजाय तेवू (सं. गुह्य) [गुदगूढम्] खिसरहंडी = ? [क्षिप्रसरहिंडिका] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ उरसउं ? वेसरद् ? अरतपरत बाप सरीखउ TM = अनुसन्धान ४६ (टि. 'म.गु.श. ' मां शब्द नोंधायेल छे, पण अर्वा गुज. अर्थ परत्वे प्रश्नार्थ. ) (सं. 'आरात् परात्' परथी) वूसट = तमाचो चूहुण्टी = ? Cas = कावड (दे.) गरढउ = वच्छीयात नीक वेडि [ आकृत्या प्रकृत्या पितासदृश: ] अगेवाणु = आगेवान, आगळ रहेनार, मोखरानुं (सं. 'अग्र' परथी) [ अग्रेनीक: ] पछेवाणु = पाछळ रहेनार, पाछळ रहेवुं ते. [पश्चादनीकम् ] [चपेटा)] [चुञ्चपटिका] (?) [कायाटना, कार्याविलिनी] [ गतार्थवयः ] [ वस्तुवित्त: ] [नीराक्षा] उसलसींधरं = ? = = THE घरडो, वृद्ध (सं. जरठ) आडतियो पाणी जवानो मार्ग = आकृतिए प्रकृतिए बापना जेवो. (टि. 'नीक' संस्कृत छे. पण 'नीक'नो बीजो अर्थ 'हाथपग दुखवानो के खंजवाळनो रोग' पण थाय छे. (सं. नीरक्ता परंथी.) 'म.गु.श. 'मां 'उक्तिर० 'नो आ शब्द बन्ने अर्थमां नोंधायेलो छे.) [ उल्लासितसन्धिकम् के उतशलंध्र ] (?) (टि. 'म.गु.श. 'मां आ शब्द 'उक्तिर०' मांथी 'ऊसलसीधुं' रूपे नों धायेलो छे. अर्वा. अर्थ अंगे प्रश्नार्थ.) सीधां खुल्लां मोटां शिंगडांवाळी गाय, उत्तम प्रकारनी गाय (सं. 'विकट' परथी.) [विकटशृङ्गी] [ मिलितशृङ्गी] [वघर्ष: ] (?) [विशरीरी ] ( ? ) मीढी वांकां शिंगडांवाळी कुण्डली - कुंडाळु-गूंचळु वळेलां शिंगडांवाळी लिपसणउं = लपसणुं (टि. 'म.गु.श. 'मां आ अर्थ अटकळे अपायो छे.) [ कुण्डलितशृङ्गी] [लिप्सायनम् ] Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २००८ वहली = वसूकी गयेली पटान्तरम् = पडदो, अन्तराय, भेद [वीतवेत्रा ] [ प्रत्यन्तरम् ] (टि. 'म.गु.श. 'मां आ शब्द 'पटांत ' एम नोंधायेलो छे.) विहाजाहरी ( ? ) ? [विजयगृहा] (?) [कोष्ठक: ] कोठउं = कोठो, ओरडो डोकर [ डोलत्करः ] छेकडी [छिद्रकरी] H = सीरामणु = भातुं सवारनो नास्तो सउडी = रजाई, सोड छे.) (टि. 'म.गु.श.' 'सउडी' ने देश्य शब्द गणे सीरख - रजाई, गोदडी (टि. राजस्थानमा प्रचलित ) तुलाई - तळाई, गादलुं = उसीसउं = ओशीकुं (सं. उच्छीर्षकम् ) - वृद्ध, घरडो (दे. डोक्कर) छेकवानुं साधन के छिद्र पाडवानुं साधन. (टि. 'म.गु.श.' आ अर्थने तेमज अहीं अपायेला संस्कृत पर्यायने संशयात्मक गणे छे.) पूणी आडण - खडोखली खण्डायतु जच्छायतु (?) भाधाधारी सिलाट = सलाट (टि. 'म.गु.श. 'मां 'उत्तिर० 'मांथी ज आ शब्द 'सिलावटउ' रूपे नोंधायेलो छे अने एनी व्युत्पत्ति छे सं शिलावर्त्मक:) तलवारधारी ? [ खड्गवित्त: ] [ तूणवित्तः ] (टि. अहीं संस्कृत पर्यायना 'तूण' शब्दने आधारे अर्वा. अर्थ आप्यो छे.) अंगशोभा, अंगमण्डन = क्रीडा माटेनी वाव, होज, ओखली) (दे. खडु + = ३३ [ शीताशनम्, शरीराप्पयकं वा ] [ संवृतपटी ] कुण्ड. [शीतरक्षा] [ तूलिका ] [ उपधानम् ] ? [शिलाघटिक: ] [पिचुमर्दी] [अङ्गमण्डनम् ] [दीर्घिका ] Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ अनुसन्धान ४६ बगाई = बगासुं [म्भिका] चीपडउ = चपटुं ? [चिपट:] (टि. 'सार्थ जोडणीकोश' 'चीपर्छ'नी व्युत्पत्ति प्रा. चिप्पड (= चपटुं) आपे छे. 'म.गु.श.'मां 'उक्तिर०' माथी 'चीपडीउ, चीपिडउ' शब्द नोंधायेल छे. एनो अर्वा. गुज. अर्थ 'एक झेरी जीवडुं' मळे छे. (सं. चिपिटक:) गूंहली = गरोळी [गोमुखा] (टि. 'म.गु.श.'ने आ अर्थ विशे संशय छे.) कोसीढ(ट?)उ = रेशमनो कीडो ? [कोषसमृद्धः] (टि. 'म.गु.श.'मां 'उक्तिर०'नो 'कोसीटउ' शब्द छे. अर्थ 'रेशमनो कीडो, एर्नु कोकडु' मळे छे. त्यां संस्कृत पर्याय 'कोषस्थः' अपायो छे.) चणहटी = कोई प्राणीनाम ? [चणकप्रवर्तकः] (टि. 'म.गु.श.'मां आ शब्द 'चणहडीउ' रूपे 'उक्तिर०'मांथी नोंधायेलो छे. अने त्यां एनो संस्कृत पर्याय 'चणकवर्तकः' अपायो छे.) लउंकडी = लोंकडी (दे. लुंकडी) [लोमकटिका] सवार = शीघ्र, सवेळा [सवेला] कालाखरिउ = धीमेथी अक्षर शीखनार, वांचतां शीखवानुं शरू ज कर्यु होय तेवो. (सं. कालाक्षरिकः) [कृष्णाक्षरितः] दाणीधणीउ = देवादार, करजदार [ऋणतः] (टि. 'म.गु.श.' मां आ शब्द 'दाणी (घंणी), दाणीगणि' तरीके नोंधायेलो छे.) त्रोटी = काननुं एक घरेणुं (रा.) [त्रिपुटी] अजूयातउं = ? [उद्मद्यमानम्] (?) (टि. 'अजूयालउं' शब्दनी संभावना. तो एनो अर्थ 'उजाळायेलु' थाय. (सं. उज्ज्वालयितुम्) Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २००८ ऊगडउ = ? [उहूदः] बयकारु = गानार (सं. वाग्+गेयकार, प्रा. वइकार) [गोयकारु] चिणोठी = चणोठी (दे. चिणोट्ठि) [चित्रपृष्टा] अडक = ? [अपराक्षा] (?) (टि. 'म.गु.श.'मां 'अडकदडक' शब्द मळे छे, जेनो अर्थ 'दडी जवाय- गबडी पडाय' थाय छे.) ढाकणउं = ढांकण ? ढांकतुं ते ? [छागनकम्] सूणहरउं = शयनगृह [शयनगृहम्] पाथरपुं = पाथरवा माटे जाईं कपडूं, जाजम [प्रसूरणम्] उढणउं = ओढणुं, स्त्रीने ओढवानुं वस्त्र (दे. ओड्ढण) [आच्छादनम्] नणंद = वरनी बहेन (सं. ननान्दृ > प्रा. णणंदा) [ननन्दा] नणदोई = नणंदनो पति [ननान्दृपतिः] जमाई = पुत्रीनो पति [जामाता] नाणिद्रउ = नणंदनो पुत्र (सं. नानान्द्रः, रा.नांणदौ) [ननान्दृसुतः] भत्रीजो = भाईनो पुत्र (सं. भ्रातृव्य > प्रा. भत्तिज्ज) [भ्रातृजः] परीयटु = धोबी (दे. परिअट्ट) [निर्नेजकः] छीपउ = कपडां रंगनारो, छीपो (दे. छिपय) [रजक:] कउतिगीउ = कौतुक-नवाई पमाडनार [कौतुकिकः] फिरकः = फिरकी [स्फुरितचक्रिका] पाटुव्याली = पादप्रहारिणी, पाटु मारती [पादप्रहारवती] (टि. 'म. गु. श.'मां 'उक्तिर०'नो आ शब्द 'पाटूआली' रूपे नोंधायेलो छे.) परमूणउ = परम दिवस- (सं. परमदिवसीय) [परमदिव] परोकउं = पाछला वर्षे ? [प्राक्वर्षायाम्] (टि. आ अर्थमां तळपदो शब्द 'पोर' वपराशमां छे.) सरलउ = दीर्घ, प्रलम्ब (सं. सरल+क) [दीर्घः] Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान 46 घडउ = घडो [घटः] उघडहू = ? [उग्घटु] (?) कहुआलङ = कोलाहल [कोलाहलः] अरणइ = अरति, असुख, पीडा, शोक, चिन्ता {अरतिः ] मोलीउं = साफो, फेंटो (सं. 'मौलि' परथी) [मूईवेष्टनम्] परिवारिउं = पार पडाएलुं ? आटोपायेलुं ? [प्रपारितम्] पालटउ = पलटो, परिवर्तन [परिवर्त] पालटिङ = पलटायेखें, परिवर्तन पामेलु [परिवर्तित:] विहरउ = वहेरो, आंतरो, तफावत (सं. व्यवहार) [व्यतिकरः] बापडो = बापडो, बिचारो, रांक (दे० बप्प) विराक:] (टि. 'म.गु.श.'मां आ शब्द 'प्रा.गु.का.' माथी ‘बप्पुडउ, बापुडउ' रूपे नोंधायेलो छे.) लगाडिउ = लगाडायेलुं ? [लागितः] पालउ = पगे चालतो, पाळो [पादवारः] सोहिलं = सुखभर्यु, सुखदायक (सं. 'सुख' परथी) [सुखावहम्] दोहिल = दुःख आपनालं, दोह्यलुं, कपरूं [दुःखावहम्] (सं. दुःख + इल्ल) रुलियामणो = रळियामणो, सुन्दर (दे. रली-परथी) [रतिजनक:] उदेगामणउं = उद्वेग पेदा करनारं [उद्वेगजनकम्] राउताई = राजपूतपणुं, वीरत्व (सं. राजपुत्र-परथी) / [राजपुत्रता] असउणिउ = अपशुकनियाळ, अपशुकन पामेलो [अपशकुनितः] अंबोडउ = अंबोडो [धम्मिल] वीणि = वेणी, चोटलो [वेणी]