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अनुसन्धान ४६
आगलि = आगळ, अग्रस्थाने, समक्ष, पहेला, हवे पछी (सं. अग्र + ल)
__ [अग्रे, पुरः] पच्छिलिउ = पाछलो, पाछळनो (सं. पश्च > पच्छाल) [पाश्चात्त्यः] सरीखउ = - ना जेवो, सरखो (सं. सदृक्षः)
[सदृक्] समान = - ना जेवू, सर.
[अतिसउल] (?) तादृक्षः = तेना जेवू, आबेहूब
[तादृशः] अनेसउ = अनोखो (सं. अन्यादृशः) [अन्यसदृक्, अन्यसदृशः, अन्यसदृक्षः] तूं सरीखऊ = तारा जेवो
[त्वादृशः] मूं सरीखउ = मारा जेवो
[मादृशः] तुम्ह सरीखउ = तमारा जेवो
[युष्मादृशः] अम्ह सरीखउ = अमारा जेवो
[अस्मादृशः] अरहउ = नजीक, अहीं, आगळ, आम (सं. आरात्) [अर्वाक्] परहउ = दूर, तहीं, पाछळ, पछी तेम (सं. परात् / परस्मिन्) [पराक्]
(टि. जूनी गुज.मां 'अरहउ-परहउ' अने अर्वा. गुज.मां 'अपर' एम सामासिक शब्दप्रयोग वधु प्रचलित छे. जेनो अहीतहीं, आमतेम, नजीकदूर, आगळपाछळ - एवा अर्थसंदर्भे वपराश छे. 'ओ' - नजीक ए शब्द साथे अरहउ > अरुनुं उच्चारसाम्य जोई
शकाशे.) पारवलि (?) - पार पामेलो, पारंगत, भणेलो (?) [पठितः] सर्वतो = सर्व प्रकारे, बधी बाजुए, चोतरफ (सं. सर्वतः) [विश्वक्] समन्तात् = सर्वत्र
[समन्ततः] उगउमुगउ = ऊगोमूगो
[अवाङ्मूकः] (टि. वर्तमानमां आवो शब्दप्रयोग प्रचलित नथी. 'म.गु.श.'ना , सम्पादक आ शब्दने द्विरुक्त प्रयोग गणे छे. अहीं अपायेलो
संस्कृत पर्याय व्युत्पत्ति तरीके अस्वीकार्य छे.) झलझांखसउं = भळभांखळु, मळसकुं
[चलद्ध्वाङ्क्षम्]
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