Book Title: Dwadash Parvkatha Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्वादशपर्वकथा-संग्रह
|सुत्रतश्रेष्ठी
कथा
Decccccccccccorecaceae
सुणिऊण देसणं तह, पुच्छइ कण्हो य जिणवर नेमि । पव्वाणि सामि ! कित्तिय ?, हवंति पक्खम्मि मासस्स ॥ ४ ॥ पभणइ नेमिजिणंदो, पव्वाणि य पंच एगपक्खम्मि । बीया दुविहे धम्मे, सट्ट जईणं जो भणियं ॥ ५ ॥ पंचमी नाणतवम्मि य, आराहियब्वा य भत्तिपूरेणं। पंचवरिसाणि मासा, पंचेव य धम्मकम्मम्मि ॥ ६ ॥ सत्थियकरणं दीवय-वट्टिय पंचेव सप्पियमएण। फलपंचढोयणं तह, विहिपुव्वं भावपूरेणं ॥ ७॥ बहुपंचमी पुणो तह, पंचय मासाणि जह य सत्तीए। कायव्वा साजवणा, पंच य पवरेण +भावेण ॥ ८ ॥ तह कत्तियपंचमिया, कायव्वा जावजीवपुरिसेण । एकवन्नकणाइमयं, फलाई ढोएइ सध्वंपि ॥९॥ पंचमितवं विहिपुव्वं, आराहई जो उ एगचित्तेण । सो परलोए पावई, नाणलंभोवमं सुत्तं ॥१०॥ तह अट्ठमीयपव्वम्मि, जीवस्स भवेइ कम्मबंधो य। नियमाउयतियभाए, अहवा नवमे य भाए य ॥११॥ अहवा सत्तावीसइमे, भाए आउस्स बंधणं अस्थि । अहवा अंतमुहुत्ते, आउस्साबसेसकालम्मि ॥१२॥ परभविआउं बंधक माएएहिं अट्ठमीइ पुणो। तह चउदसिदिवसम्मि परभवआउं न संदेहो ॥१३॥ अट्ठमि चउदसीमुं, सावओ जइ हविज विरइपरो । तव पोसहाइकरणं, सावजं वज्जए सव्वं ॥ १४ ॥ इकारसी विहिवरा, इकरसंगस्स नामो भणिआ। आराहउ भत्तिपरा, भविया! भावेण परिसंता ॥ १५॥ इक्कारसी तिहिवरा, सविसेसाराहिया पयत्तेण। जिणकल्लाणगपन्नासं, तम्मिय दिवसम्मि य हवंति ॥१६॥ पंच य भरहम्मि पुणो, पंच य एरवयम्मि समकालं । चउवीस [मि] पि? जिणाणं, पंच य कल्लाणगाणि तो ॥१७॥ __ + 'कम्मेण यद्वा 'ठामेण' इति प्रत्यन्तरे.
CameezmeroezonezoevereeDo
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127