Book Title: Dwadash Parvkatha Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 121
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वादशपर्वकथा-संग्रह सुव्रतश्रेष्ठी कथा ॥ ११६॥ vermezmeeDeceedeemeroen पुवभवे इगारसि-तवोविहाणं मए कयं रम्मं । तेणं चिय पुनेणं, आरणदेवो समुप्पनो ॥ ७६ ॥ सत्तोहं इस भरहे, सुब्बयसिट्ठीय रिद्धिसंपन्नो। इक्कारकोडिसामि य, सो सुयदेवी पभावेणं ॥७७॥ भयवं ! कहेसु पुणरवि, इहेब जम्मम्मि किंपि तवचरणं। काहे ही सकुटंबो, परभवसुक्यफलं होई ॥७८॥ तो गुरुणा भणियमिणं, महाणुभागोसि धम्मपरिणामो। पुत्रभवे इक्कारसि, इक्कारसंगि भत्तिकया ॥ ७९ ॥ अहुणा पुण सुयभत्ती, इक्कारसितवं करेसु मोणेणं । पोसहकरणेण पुणो, छज्जीवविवजणवाए ॥ ८॥ विहिणा जइ तं गारसि. करेसि सुफयत्थबोहिलामो य । केवलियनाणलंभो, परभवगहणे न संदेहो ॥ ८१॥ विहिपुव्वं चिय विडियं, धम्माणुट्ठाणमुज्जवणसहिये । नियसत्तिकयं जम्हा, बहुफललाभाय होइत्ति ॥ ८२॥ सुब्धयसिट्ठी य तओ, नियमज्जाए जुओ सपरिवारो। मोणेणेगारसितवं, बरिसेणं एगमासेणं ॥८॥ रुद्दसंखेण मासेणं, इकारसितवं कयं पयत्तेणं । पारणपारणगम्मि य, नाणपूया कया रम्मा ॥८४ ॥ पुण्णे य तवोकम्मे, उज्जमइ निययरिद्धिवित्थारं। इक्कारसंग लेहिय, तव्वष्णसमग्गयं ढोई ॥ ८५॥ साहम्भियवच्छल्लं, संघं पूएइ भत्तिसंजुत्तो। पुणरवि गुरूणापुच्छइ, पुणरवि इकारसी करणे ॥ ८६ ॥ गुरुणा भणियं निमुणसु, मग्गसिरसेयगारसी परिसे। एगा पुण कायव्वा, कम्मक्खयबोहिलाभाय ॥ ८७ ॥ पन्नासं कल्लाणं, हवंति इकारसीदिणे तम्हा। एयम्मि दिणे तेणं, मगसिरिगारसी पवरा ॥८८॥ आरंभह भवियनरा !, मग्गसिरिगारसी महापवरा । मणवइकायविराहणं, मुत्तुं जिणवयणधम्मधरा ॥ ८९ ॥ मोणं चिय विहेयव्वं, भणणगुणणाइ मुत्तु पवरतरं । सव्वं विहिणा सूर्य, सफलं चिय हवइ सयलंपि ॥९॥ For Private and Personal Use Only

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