Book Title: Dwadash Parvkatha Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
द्वादशपर्वकथा-संग्रह
| सुत्रतश्रेष्ठी
कथा
११८॥
CODecemedec2eCD
सासणदेवीइ तो, तळायरा भिया य तकालं । तं सुणिऊणं राया, सपरियरो आगो गेहे ॥१०५॥ सुव्वयसिट्ठी य तओ, पवरं वत्थं निवस्स ढोइत्ता। विन्नत्तो नरनाहो, सामीहिं किं पि भग्गेमि ॥१०६।। तो नयरसामिणा पुण, कहियं जं +माणसम्मि तं मग्ग। वाणी एसा मे पुण, जं पत्थसि देमि तं सव्वं ॥१०७॥ सिट्ठी पत्येइ तओ, चोराणमभयं देहि दाणं च । दिनं चिय भूवइणा, ता चोरा सिट्टिणा वुत्ता ॥१०८॥ भो चोरा! नियठाणं, गच्छेह समाहिणा कयपमोया । भियमुक्का य गया, नियनियभवणेसु रंगधरा ॥१०९॥ राया भणेइ सिद्धिं, निसि चोरा किंन वारिया तत्थ । सुव्वय भणेइ तत्तो, नियम नियमा न भंजेमि ॥११०॥ आणंदिओ य राया, सिढि सकुडुंबयं समाणेइ । धम्मम्मि निच्चळतं, सुपसंसइ सपरिवारो य ॥१११॥ नियगेहं संपत्ता, रायालोया तळायरप्पमुहा य। जिणधम्मस्स पसंसा-परायणा सव्वकालम्मि ॥११२॥ पुणरवि गारसि दिवसे, तवं च पोसह कुणइ सिट्ठी। अग्गी लग्गो नयरे, कोया सव्वे विय रडंति ॥११॥ पाडोसिएण तईया, बुबा दत्ता य सिद्विगेहेसु । अग्गी कग्गो नीसरसु, गेहाओ पळायणं कुणह ॥११॥ तं सुणिऊणं सिट्ठी, सकुटुंबो काउसग्गमावन्नो । ठिओ य निच्चळमणो, मणवयकाएण महादढो ॥११५॥ अग्गी विहु सिद्धिगिह, हट्ट बक्खारि सिट्टि परिभोगं । मोइत्ता सव्वं चिय, नयर बालेइ जालाए ॥११६॥ जिणभवणं चिय पोसह-सालासाहूहि सहिय मोइत्ता। निर्ण पत्ता सममेव, जंपइ लोओ पसायम्मि ॥११७॥ सिट्ठिपभावेणं चिय, हट्टवक्खारि गिहगयं सव्वं । सिट्ठिसंबंधियं तह, न जालियं अग्गिणावि तहा ॥११८॥
+ 'मणसि' " इटुं" च प्रत्यन्तरे ।
AREconneconomonaCCORDERDCORDCORD
॥ ११८ ॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 121 122 123 124 125 126 127