Book Title: Dighnikayo Part 3 Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri View full book textPage 8
________________ १२३ दुतियभाणवारो १२४ | १०. सङ्गीतिसुत्तं उब्भतकनवसन्धागारं १२५ भिन्ननिगण्ठवत्थु १२६ दुकं १२८ १५६ १६६ १६६ १६७ १६८ १६९ एककं तिकं चतुक्कं १७१ १७६ १८६ १३० १९२ १९८ १३२ २०१ लक्खणं (२०) रसग्गसग्गितालक्खणं (२१-२२) अभिनीलनेत्तगोपखुम लक्खणानि (२३) उण्हीससीसलक्खणं (२४-२५) एकेकलोमताउण्णा लक्खणानि (२६-२७) चत्तालीसअविरळदन्त लक्खणानि (२८-२९) पहूतजिव्हाब्रह्मस्सर लक्खणानि (३०) सीहहनुलक्खणं (३१-३२) समदन्तसुसुक्कदाठा लक्खणानि ८. सिङ्गालसुत्तं छ दिसा चत्तारोकम्मकिलेसा चतुट्ठानं छ अपायमुखानि सुरामेरयस्स छ आदीनवा विकालचरियाय छ आदीनवा समज्जाभिचरणस्स छ आदीनवा जूतप्पमादस्स छ आदीनवा पापमित्तताय छ आदीनवा आलस्यस्स छ आदीनवा मित्तपतिरूपका सुहदमित्तो छद्दिसापटिच्छादनकण्डं ९. आटानाटियसुत्तं पठमभाणवारो २०८ २१२ २१७ २१७ २१८ २२० १३६ १३७ ३ १२९ पञ्चकं छक्कं सत्तकं अट्ठकं नवकं १३३ दसकं १३६ ११. दसुत्तरसुत्तं एकोधम्मो द्वेधम्मा १३७ तयोधम्मा चत्तारोधम्मा १३८ पञ्चधम्मा १३८ छधम्मा सत्तधम्मा १३९ अट्ठधम्मा १३९ नवधम्मा १३९ दसधम्मा तस्सुद्दानं | सद्दानुक्कमणिका १४३ गाथानुक्कमणिका १४७ संदर्भ-सूची १४७ १३८ १३८ २२३ २२७ २३१ २३४ २४३ २४७ २५२ १४१ १४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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