Book Title: Dighnikayo Part 3
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 15
________________ [४] हो जाता है। उस काल में भी आभस्सर योनि में जन्मे हुए प्राणी मनोमय, प्रीति-भोजी, स्वयं-प्रभ, अंतरिक्ष-गामी और शुभ-स्थायी होकर चिरकाल तक बने रहते हैं। बहुत समय के बाद फिर लोक की उत्पत्ति होती है। उस समय शून्य ब्रह्म-विमान प्रकट होता है। तब आभस्सर लोक का कोई प्राणी उस लोक से च्युत हो कर इस विमान में उत्पन्न होता है । वह मनोमय, प्रीति-भोजी, स्वयं-प्रभ, अंतरिक्ष-गामी और शुभ-स्थायी बना रह कर, बहुत दिनों तक इसमें रहता है। फिर अकेले रह, जी ऊब जाने से दूसरे प्राणियों के आने की कामना करता है । तब आयु अथवा पुण्य के क्षय होने से दूसरे प्राणी भी उस विमान में उत्पन्न होते हैं और मनोमय, प्रीति-भोजी, सवयं-प्रभ, अंतरिक्ष-गामी और शुभ-स्थायी बने रह कर, बहुत दिनों तक वहां टिकते हैं। तब शून्य ब्रह्म-विमान में पहले उत्पन्न हुआ प्राणी सोचता है कि मैं ही ब्रह्मा, ईश्वर, कर्ता, निर्माता हूं | मेरे चाहने से ही ये दूसरे प्राणी उत्पन्न हुए हैं। बाद में उत्पन्न हुए प्राणी भी सोचते हैं कि यही ब्रह्मा, ईश्वर, कर्ता, निर्माता है क्योंकि हमने इसे यहां पर पहले से ही विद्यमान पाया था । उन बाद में उत्पन्न हुए प्राणियों में से जब कोई प्राणी इस लोक में जन्म लेकर, समाधि का अभ्यास कर, अपने उस पूर्वजन्म-विशेष को स्मरण करता है, परंतु उससे पहले के जन्म को स्मरण नहीं करता, तब ऐसा कहने लगता है कि जो वह ब्रह्मा, ईश्वर, कर्ता, निर्माता है; जिसने हमें उत्पन्न किया, वह नित्य, ध्रुव, शाश्वत, अ-विपरिणामधर्मा है और हम लोग, जो उनसे उत्पन्न हुए; अ-नित्य, अ-ध्रुव, अल्पायु एवं मरणधर्मा हैं । इसी प्रकार कितने ही लोग खिड्डापदोसिक, मनपदोसिक अथवा अधिच्चसमुप्पन्न देवता के आदिपुरुष होने के मत को मानते है। ये देवता भी अपनी-अपनी देवकाया छोड़कर इस लोक में उत्पन्न हो, समाधि के अभ्यास द्वारा, अपने पूर्वजन्म-विशेष को स्मरण कर, परंतु उससे पहले के जन्म को स्मरण न कर, गलत धारणा के शिकार हो जाते हैं। परंतु मैं लोकों की अग्र अवस्था को प्रज्ञा से जानता हूं। मैं इसे तो प्रज्ञा से जानता ही हूं, इससे परे भी प्रज्ञा से जानता हूं, और उस प्रज्ञा से जाने हुए के प्रति आसक्ति नहीं करता हूं, और अनासक्त रह मैं अपने भीतर मुक्ति का अनुभव करता हूं, जिसे हर प्रकार से जान कर तथागत कभी दुःख नहीं पाते हैं। यह कहने के उपरांत भगवान ने कहा कि कई लोग मुझ पर यह कहने का झूठा दोष लगाते हैं कि जिस समय शुभ विमोक्ष उत्पन्न करके योगी विहार करता है उस समय वह प्रज्ञा से सब कुछ अशुभ ही अशुभ देखता है | वस्तुतः मैं ऐसा नहीं कहता । मेरा कहना तो यह है कि जिस समय 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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