Book Title: Dighnikayo Part 3
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 16
________________ शुभ विमोक्ष उत्पन्न करके योगी विहार करता है उस समय वह प्रज्ञा से सब कुछ शुभ ही शुभ देखता है। इस पर परिव्राजक ने भगवान से प्रार्थना की कि आप मुझे उस धर्म का उपदेश करें जिससे मैं शुभ-विमोक्ष को उत्पन्न कर विहार कर सकूँ । परंतु भगवान ने कहा कि दूसरे मत वाले, दूसरे विचार वाले, दूसरी रुचि वाले, दूसरे आयोग वाले, दूसरे आचार्य वाले लोगों के लिये शुभ-विमोक्ष को उत्पन्न कर विहार करना दुष्कर है। २. उदुम्बरिकसुत्त एक समय भगवान राजगह के गिज्झकूट पर्वत पर विहार करते थे। उस समय निग्रोध नाम का परिव्राजक तीन हजार परिव्राजकों की एक बड़ी मंडली के साथ उदुम्बरिका नामक आराम में वास करता था। एक दिन निग्रोध नाना प्रकार की निरर्थक कथा-कहानियां कहती, शोर मचाती, अपनी मंडली के साथ बैठा था । इतने में भगवान के सन्धान नाम के श्रावक गृहपति वहां आ पहुँचे । गृहपति के साथ संलाप करते हुए निग्रोध ने भगवान के बारे में अपशब्द कहे कि उनकी बुद्धि मारी गयी है, वे सभा से मुँह चुराते हैं, संवाद करने में असमर्थ हैं, इत्यादि । ___ इतने में भगवान भी वहां पर आ गये। निग्रोध ने उनका स्वागत कर उनसे पूछा कि वह कौन सा धर्म है जिससे आप अपने श्रावकों को विनीत करते हैं, जिससे विनीत हुए-हुए वे आदि-ब्रह्मचर्य के पालन में आश्वासन पाते हैं। इस पर भगवान ने कहा कि अन्य मत वाले, अन्य सिद्धांत वाले, अन्य रुचि वाले, अन्य आयोग वाले, अन्य आचार्य वाले तुम लोगों को यह समझाना बहुत कठिन है, अतः तुम अपने मत के बारे में ही प्रश्न पूछो। इस पर निग्रोध ने पूछा कि क्या होने से तप-जुगुप्सा पूरी होती है और क्या होने से पूरी नहीं होती | भगवान ने कहा यदि कोई तपस्वी अपने तप के कारण अपने मन में अहंकार, ईर्ष्या, मात्सर्यादि विकृतियां जगाता है अथवा अपनी मान्यता के प्रति चिपकाव पैदा कर लेता है तो ये उस तपस्वी के उपक्लेश होते हैं और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वह इन मामलों में परिशुद्ध बना रहता है। फिर भगवान ने इससे आगे से आगे प्रशंसनीय और सार्थक तपों की जानकारी दी। जैसे - 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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