Book Title: Dhyata Dhyan aur Dhyey
Author(s): Suprabhakumari
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf

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Page 1
________________ ध्याता, ध्यान और ध्येय ।। आर्या सुप्रभाकुमारी 'सुधा' एम. ए., साहित्यरत्न अर्चनार्चन ध्यान एक सर्वोत्तम साधना है। साधना का क्षेत्र भी बड़ा जटिल और विस्तृत है। निदिष्ट साध्य को प्राप्त करने के लिए साधना करना अनिवार्य है। किन्तु उसका लक्ष्य जीवन को निर्मल, पवित्र तथा उज्ज्वल बनाने का होना चाहिये । प्रान्तरिक विकारों का शमन करना ध्यान-साधना का मुख्य लक्ष्य है। तत्त्वचिन्तन की भावना का विकास करके मन को किसी एक पदार्थ या तत्त्व के चिन्तन पर स्थिर करना ध्यान है। ध्यान मानसिक प्रक्रिया है, जिसके अनुसार किसी वस्तु की स्थापना अपने मानस क्षेत्र में की जाती है। मानसिक क्षेत्र में स्थापित की हुई वस्तु हमारे चिन्तन का प्रधान केन्द्र बनती है तथा उसकी ओर मस्तिष्क की अधिकांश शक्तियां खिच जाती हैं। फलस्वरूप एक स्थान पर उनका केन्द्रीयकरण होने लगता है। जिस प्रकार चुम्बक अपने चारों मोर बिखरे हुए लोह-कणों को सब ओर से खींचकर अपने पास जमा कर लेता है, इसी प्रकार ध्यान द्वारा बिखरी हुई समस्त चित्त-वृत्तियां एक ही केन्द्र पर सिमट पाती हैं। एक छोटी-सी कहावत है-"जैसी मनसा, वैसी दशा।" ध्यान के विषय में भी यही बात है। जैसा ध्यान किया जाता है, मनुष्य वैसा ही बनने लगता है। जिस प्रकार किसी साँचे में गीली मिट्टी को दबाने से मिट्टी की प्राकृति साँचे के अनुसार बन जाती है। कीट और भङ्ग का उदाहरण भी इसी बात को स्पष्ट करता है। कहा जाता है-भङ्ग झींगुर को पकड़ कर ले पाता है और उसके चारों ओर लगातार गुञ्जन करता रहता है। झींगुर उस गुञ्जन को तन्मय होकर सुनता रहता है और भङ्ग के रूप को तथा उसकी चेष्टानों को एकाग्रतापूर्वक निहारता रहता है । परिणाम यह होता है कि झींगुर का मन भृङ्गमय हो जाने के कारण उसका शरीर भी उसी ढांचे में ढलता जाता है और उसके रक्त, मांस, नस, नाड़ी, त्वचा, मन आदि में परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है। थोड़े समय में ही झींगुर मन और शरीर से भी असली भङ्ग के समान बन जाता है। इसी प्रकार ध्यानशक्ति के द्वारा साधक का सर्वाङ्गपूर्ण कायाकल्प हो जाता है । इस प्रकार कोई आदर्श, लक्ष्य या इष्ट निर्धारित करके उसमें लीन हो जाने को ही 'ध्यान' कहते हैं। स्वामी शिवानन्द के शब्दों में-"ध्यान मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र राजमार्ग है। ध्यान एक रहस्यमयी सीढ़ी है जो अवनी और अम्बर को मिलाती है तथा साधक को ब्रह्म के अमरलोक की ओर ले जाती है।" किसी अन्य विद्वान् ने भी कहा है "ध्यान ही वह गगन है जहाँ गगन-मानव मन के अमित बलशाली आराध्य की तस्वीर खींचने में देवी चितेरे भी असफल होते पाए हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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