Book Title: Dhyata Dhyan aur Dhyey
Author(s): Suprabhakumari
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf

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Page 10
________________ भ्याता, ध्यान और ध्येय / 65 ध्यान का सबसे उत्तम समय प्रातःकाल और संध्याकाल है। प्रातःकाल ब्रह्ममुहर्त में बिना हिले-डले पाराम से बैठ जाना / सारे शरीर के कंपन को छोड़ देना और रीढ को एकदम सीधा कर लेना चाहिये / अांखें बन्द करके बहुत धीमी श्वास लेना, श्वास को देखते रहना, फिर बड़ी धीमी गति से श्वास को छोड़ना चाहिये। यदि बैठकर ध्यान करना है तो मेरुदण्ड सीधा रहे, इस बात का पूरा ध्यान रहना चाहिये / शरीर एकदम स्थिर रहे। ध्यान प्रारम्भ करने से पूर्व पांच-दस मिनट तक स्थिर बैठना / अपने विचारों को रोकना नहीं। विचार को प्राने दीजिए और उसे देखिये / प्रत्येक विचार को देखना, किन्तु साक्षी बनकर ही देखना चाहिए। ध्यान दो प्रकार के हैं-सक्रिय एवं निष्क्रिय / (1) सक्रिय ध्यान-वास्तव में योग का उद्देश्य यह है कि सामान्य जीवन के कर्मसम्पादन में भी मनुष्य ध्यान की अवस्था में रह सके। यही सक्रिय ध्यान है। इसका यह अर्थ नहीं कि वह दैनिक कार्यों के प्रति अन्यमनस्क हो जाय, बल्कि यह है कि वह अधिक तत्परता एवं दक्षता से कार्य सम्पन्न करे। निष्क्रिय ध्यान के माध्यम से भी सक्रिय ध्यान का अभ्यास किया जा सकता है। (2) निष्क्रिय ध्यान-निष्क्रिय ध्यान में एक प्रासन में बैठकर ध्यान का अभ्यास किया जाता है। चंचल मन को एक बिन्दु पर केन्द्रित करना ही इसका उद्देश्य है / निष्क्रिय ध्यान से मन शान्त रहता है और अन्तर्मुखता पाती है / न साम्येन विना ध्यानं, न ध्यानेन विना च तत् / निष्कम्पं जायते तस्माद् द्वयमन्योन्यकारणम् // -योगशास्त्र ध्यान के लिए समभाव अनिवार्य है / समभाव के बिना ध्यान नहीं होता और ध्यान के बिना समता नहीं पाती / दोनों में परस्पर कार्य-कारण भाव है। ध्यान आत्मा के लिए महान् हितकारी माना गया है / ध्यान से प्रात्मज्ञान प्राप्त होता है तथा प्रात्मज्ञान से कर्मों का क्षय होता है। कर्मों का क्षय हो जाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्रद्धया पूज्य गुरुवर्या महासती श्री अर्चनाजी महाराज प्रति दिन तीन बार ध्यान में विराजते हैं। सद्गुरुवर्या जो केन्द्र बनाकर ध्यान करते हैं, उनकी दो-दो, तीन-तीन घण्टों की समाधि लग जाती है। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। प्रत्येक मुमुक्षु साधक एवं साधिका के लिए ध्यानयोग अतीव उपकारक है। ध्यानसाधना से जीवन में कल्पनातीत परिवर्तन आ जाता है और जब साधक का जीवन परिवर्तित हो जाता तो समग्र सष्टि का उसके लिए रूपान्तरण हो जाता है / -अध्यात्मजगत् की परम साधिका श्री उमरावकुवरजी म. सा. 'अर्चना' की सुशिष्या 00 आसअरथ तम आत्मस्थ मन तव हो सके आश्वस्त जम Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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