Book Title: Dhyan Kalptaru
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Kundanmal Ghummarmal Seth

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Page 7
________________ का अवकाशही नहीं मिलताथा, अपने कार्यसे निवृत अन्य के छिद्र दर्गुण वगैरा गवेक्षण करने का परपंच वी कथा वगैरा में व्यर्थ काल गमाने की फुरसत ही नहीं पा ते थे, ज्ञान ध्यान सुकृत्यों में निरंतर मग्न रहतेथे, जिप्स से जिन्ह का चित सदा शांत और स्थिर रहताथा. जैन जैसे निर्दोष और र्पूण पवित्र धर्म को पूर्ण प्रकाश मयबनारक्खाथा! और उनके लिये मोक्षद्वार हमेशा खुला था.अब देखीये अभीके जैन साधू श्रावकों की तर्फ बहू तसे तो ध्यानमें समझतेही नहीं हैं. कितनेक ध्यान और काऊत्सर्गको एक ही कहते हैं, परंतु जो एक होता तो बारह प्रकारके तपमें अलग २ क्यो कहा? काउत्सर्ग तो काया को उत्सर्ग (उपसर्ग) के सन्मुख करनेका और ध्यान विचार करनेका नाम है. - ध्यान के गुण पूरे नहीं जाणने से इस वक्त प्रा यः ध्यान नष्ट जैसाही होरहाहै. जिससे वृत धारीयों को फुरसत मिली, स्वछन्द वृतीहो विकथादि अनेक परपंचमें फसे, बैरागी के सरागी बने और धर्म के नाम से अनेक झगडे खडेकर मन मुखतियार बन बठे अपना २ पक्ष बान्ध लिया, यह मेरा अच्छा और वह तेरा बुरा, मोक्ष का इजारा हमारे पन्थ बाले को ही है, अन्य सब मिथ्यात्वी हैं, हमारे को छोड अन्य को अ

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