Book Title: Dhaturatnakar Part 1 Author(s): Lavanyasuri Publisher: Rashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi View full book textPage 8
________________ भूमिका - धातुरत्नाकर हैम-व्याकरण की पद्धति में धातुरूपों का एक विपुल संग्रह है। इस संग्रह के कर्ता जैनमुनि आचार्य श्रीलावण्यविजयसूरि हैं। ___ पाणिनि-व्याकरण तथा पाणिनि-उत्तरवर्ती संस्कृत व्याकरण की अनेक परम्पराओं के स्वरूपनिर्माण में जैनवैयाकरणों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। जैन-वैयाकरणों में जैनेन्द्र, शाकटायन तथा हेमचन्द्र ने अपनी विशिष्ट व्याकरणपद्धतियाँ स्थापित की हैं। उक्त व्याकरणपद्धतियों में, और संभवतः समस्त पाणिनि-उत्तरवर्ती व्याकरणपद्धतियों में, हेमचन्द्र द्वारा स्थापित व विकसित हैम-व्याकरण स्वयं में सर्वाधिक समग्र व सर्वाधिक वैज्ञानिक व्याकरण-तन्त्र है। __ अपनी स्थापना के अनन्तर छोटी सी कालावधि में ही हैम-व्याकरण का गहन प्रचार और प्रसार हुआ। विद्वत्समाज के बीच इसे शीघ्र ही व्यापक स्वीकृति मिल गयी। हैम-व्याकरण चूँकि संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत भाषा का भी व्याकरण प्रस्तुत करता था, इसलिए जैन परम्परा में तो विशेष रूप से इसके अध्ययन-अध्यापन की एक सुदीर्घ परम्परा ही प्रारम्भ हो गयी। जैन-धर्मावलम्बियों के बीच यह अविलम्ब ही बहुत लोकप्रिय हो गया। प्रो०. कीलहॉर्न के अनुसार हेमचन्द्र ने समस्त पूर्ववर्ती व्याकरणपद्धतियों का गम्भीर अध्ययन व विस्तृत मनन किया था और उनकी शैलियों व गुण-दोषों की आलोचनात्मक मीमांसा की थी। इसी अध्ययन-मनन और मीमांसा के फलस्वरूप ही वे अपने व्याकरणतन्त्र को एक परिष्कृत एवं उत्कृष्ट स्वरूप प्रदान कर सके थे। हेमचन्द्राचार्य का व्यक्तित्व हेमचन्द्र जैन-धर्म की श्वेताम्बर-शाखा के एक अग्रणी आचार्य थे। वे बारहवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध जैन विद्वान् हैं। जैन मतानुयायियों के बीच उनका नाम अत्यन्त श्रद्धा से लिया जाता है। जैन ग्रन्थकारों में उनका मूर्धन्य स्थान है। जैनपरम्परा में वे आचार्य हेमचन्द्रसूरि के नाम से विख्यात हैं। हेमचन्द्रसूरि की विविध शास्त्रों में अव्याहत गति थी। जैनधर्मावलम्बी उन्हें 'सर्वज्ञ' मानते हैं। विविध विद्याओं में पारङ्गत होने के कारण ही इस अप्रतिम मनीषी को अनहिलपाटन के सम्राट ने 'कलिकालसर्वज्ञ' की उपाधि प्रदान की थी। मेरुतुङ्गसूरिविरचित 'प्रबन्धचिन्तामणि' तथा प्रभाचन्द्रसूरिकृत 'प्रभावकचरित' नामक ग्रन्थ में आचार्य हेमचन्द्र के जीवन का विस्तृत विवरण दिया गया है। उन्हीं विवरणों को आधार बनाकर जर्मन विद्वान् डॉ० जी. ब्यूलर ने हेमचन्द्र का जीवनवृत्त लिखा था। यह जीवनवृत्त १८८९ में जर्मनी से प्रकाशित हुआ था। मणिलाल पटेल ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया है। पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद वाला यह संस्करण १९३६ में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ था। हेमचन्द्राचार्य का जन्म सन् १०८८ में हुआ था। पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक कार्तिक पूर्णिमा संवत् ११४५ के दिन को उनकी जन्मतिथि मानते हैं। हेमचन्द्र के जन्मकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में कोई वैमत्य नहीं है। हेमचन्द्र का जन्म अहमदाबाद के समीप 'धुन्धुका' नामक स्थान पर हुआ था। यह स्थान अहमदाबाद से ६० मील दक्षिण-पश्चिम कोण में स्थित है। प्राचीन समय में यह एक समृद्ध नगर था। अनेक ग्रन्थों में इस नगर को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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