Book Title: Dhaturatnakar Part 1
Author(s): Lavanyasuri
Publisher: Rashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi

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Page 11
________________ १५. निघण्टुशेष १६. धातुपाठ १७. धातुमाला १८. धातुपारायण १९. देशीनाममाला २०. अनेकार्थकोष २१. अनेकार्थशेष २२. काव्यानुशासन २३. उणादिसूत्रवृत्ति हेमचन्द्रप्रणीत सिद्धहैमशब्दानुशासन ___ प्रो० कीलहॉर्न ने हैम व्याकरण को मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण कहा है। हेमचन्द्रसूरि की व्याकरणविषयक प्रमुख रचना 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' है। कहा जाता है कि यह ग्रन्थ उन्होंने सिद्धराज जयसिंह के आग्रह पर लिखा था। प्रभावकचरित में इस संबन्ध में एक रोचक प्रसङ्ग मिलता है। उस प्रसङ्ग के अनुसार एक दिन हेमचन्द्र ने राजा सिद्धराज को भोजदेवकृत सरस्वतीकण्ठाभरण नामक व्याकरणग्रन्थ दिखाया। राजा के समक्ष हेमचन्द्र ने उस ग्रन्थ की बहुत प्रशंसा की। यह सुनकर सिद्धराज ने इच्छा व्यक्त की कि हेमचन्द्र स्वयं एक व्याकरणग्रन्थ लिखें। यह ग्रन्थ न केवल सरस्वतीकण्ठाभरण से अपितु अन्य सभी व्याकरणपद्धतियों की तुलना में अधिक उत्कृष्ट, अधिक समग्र व अधिक सरल हो। इस ग्रन्थ में संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत भाषा का भी सर्वांग विवेचन हो और इस ग्रन्थ का नाम राजा के नाम पर रखा जाय यशो मम तव ख्याति: पुण्यं च मुनिनायक। विश्वलोकोपकाराय कुरु व्याकरणं नवम्।। गुजरात में उन दिनों अध्ययन-अध्यापन में सर्ववर्माविरचित कातन्त्रव्याकरण का प्रचलन था। यह ग्रन्थ स्वयं में समग्र नहीं था। और पाणिनि-व्याकरण के साथ-साथ संस्कृत व्याकरण की अन्य सभी परम्पराएँ बहुत जटिल और बहुत विस्तृत थी। ऐसे में हेमचन्द्र को राजा का उक्त आग्रह अर्थपूर्ण लगा। उन्होंने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और एक सर्वांगपूर्ण व्याकरणग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ का नाम हेमचन्द्र ने 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' रखा। राजा की इच्छानुसार ग्रन्थ के नाम के आरम्भ में राजा का नाम (सिद्ध) सम्मिलित किया गया। इसके साथ ही ग्रन्थकार ने ग्रन्थ के नाम में अपना नाम (हैम) भी जोड़ दिया। शब्दानुशासन का तात्पर्य व्याकरण से है। इस प्रकार इस ग्रन्थ का पूरा नाम 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' रखा गया। हेमचन्द्र ने 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' में संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत भाषा के व्याकरण का भी प्रवचन किया गया है। उन्होंने पाणिनि की अष्टाध्यायी का अनुसरण करते हुए अपने 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' को आठ अध्याययों में विभाजित किया है। प्रत्येक अध्याय में पाणिनि-अष्टाध्यायी के समान ही चार-चार पाद हैं। ग्रन्थ के प्रारम्भिक सात अध्याययों में संस्कृत भाषा का व्याकरण प्रस्तुत किया गया है। जबकि अन्तिम तथा आठवें अध्याय में प्राकृत भाषा का व्याकरण है। हेमचन्द्र ने प्राकृत भाषा को आर्ष कहा है। व्याश्रयमहाकाव्य नामक अपने रचना में हेमचन्द्र ने हैमव्याकरण के उदाहरणों को सूत्रक्रमनुसार प्रस्तुत किया है। यह महाकाव्य संस्कृत और प्राकृत भाषाओं में लिखा गया है। इसके आदिम २० सर्ग संस्कृत में और अन्त के ८ सर्ग प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं। यह ग्रन्थ चालूक्यवंशी राजाओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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