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धातुओं का संग्रह करके उनके क्रियारूपों की सरल, समग्र व सुनियोजित निष्पत्ति के लिए व्याकरणतन्त्र के अनेक प्रवक्ताओं ने अपने-अपने शब्दानुशासन में उन धातुओं की एक विशेष क्रम में जो नियोजना की है उसे ही धातुपाठ कहते हैं।
यद्यपि ऐसा माना जा सकता है कि संस्कृत के सभी व्याकरणतन्त्रों में धातुपाठ का प्रवचन अवश्यमेव किया गया होगा, परन्तु आज पाणिनि - धातुपाठ के अतिरिक्त चान्द्र, जैनेन्द्र, काशकृत्स्न, कातन्त्र, शाकटायन और कविकल्पदुमयह अन्य सात धातुपाठ ही उपलब्ध होते हैं । यद्यपि चान्द्र आदि पाणिनि-उत्तरवर्ती धातुपाठों की अपनी-अपनी मौलिकताएँ व अपनी विशेषताएँ हैं, पुनरपि हम निःशङ्क होकर कह सकते हैं कि उपलब्ध सभी धातुपाठों का प्रवचन पूर्णतया पाणिनि-धातुपाठ को आधार बनाकर ही किया गया है। पाणिनि- धातुपाठ सभी धातुपाठों का उत्स है । हैमधातु पाठ में धातुओं को अकारादिक्रम से रखा गया है। यहाँ तक की अन्तर्गणीय धातुओं को भी अकारादिक्रम से रखा गया है। प्रो० पल्सुले ने इस अर्थ में हैमधातु पाठ को सर्वाधिक वैज्ञानिक धातुपाठ माना है । अकारादिक्रम के सम्बन्ध में एक विशेष बात यह है कि हेमचन्द्र ने 'क्ष' को स्वतन्त्र वर्ण मानकर क्षकारांत धातुओं को हकारांत धातुओं के बाद पढ़ा है। इस धातुपाठ में अनिट् धातुओं को द्योतित करने के लिए धातुओं में अनुबन्ध के रूप में अनुस्वार रखा गया है।
हैम
धातुपाठ की व्याख्याएँ
हेमचन्द्र के धातुपाठ पर कतिपय टीकाएँ भी लिखी गई हैं। उन टीकाओं में हैम धातुओं, उनके अर्थों व धातुरूपों की निष्पतिप्रक्रिया पर विद्वत्तापूर्ण टिप्पणियाँ की गई हैं। इन टीकाओं में सर्वप्रथम हेमचन्द्र की स्वोपज्ञ टीका है। हेमचन्द्र ने स्वयं अपने धातुपाठ पर 'धातुपारायण' नामक एक व्याख्या लिखी है। यह व्याख्या आकार में विशाल है। इसमें ५६०० श्लोक हैं। पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार हेमचन्द्र ने धातुपारायण का एक संक्षिप्त संस्करण भी तैयार किया था। इस संस्करण को 'लघुधातुपारायण' नाम दिया जा सकता है।
धातुपारायण पर 'मधातुपारायणटिप्पण' नामक एक अन्य टीका भी प्राप्त होती है । पण्डित मीमांसक के अनुसार यह व्याख्या संवत् १३१६ में लिखी गई है। इस टीका के लेखक का नाम ज्ञात नहीं है।
हैम धातुपाठ पर 'क्रियारत्नसमुच्चय' नाम से एक अन्य टीका भी मिलती है। यह टीका एक श्रेष्ठ रचना है। इसके रचयिता का नाम गुणरत्नसूरि है। पण्डित मीमांसक ने इसके लेखन का समय विक्रम संवत् १४६६ माना है। ग्रन्थकार ने इसमें हैमधातुपारायण की पद्धति का ही अनुसरण किया है। टीकाकार अनेक स्थलों पर धातुसम्बन्धी प्राचीन मतों का विस्तारपूर्वक विवेचन करते चलते हैं।
है धातुपाठ पर 'अवचूरी' नामक एक अन्य टीका भी देखने को मिलती है। इस टीका के लेखक जयवीरगणि हैं । पण्डित मीमांसक के अनुसार 'अवचूरी' टीका का निर्माणकाल वि० सं० १५०१ है । इसके अतिरिक्त हैम धातुपाठ पर ‘आख्यातवृत्ति' नामक टीका भी मिलती है। इस टीका के लेखक का नाम अज्ञात है।
यहाँ यह वर्णन करना भी आवश्यक है कि हैम धातुपाठ पर श्रीहर्षगणि नामक किसी विद्वान् ने एक पद्यबद्ध व्याख्या भी लिखी थी। इस ग्रन्थ का नाम कविकल्पद्रुम है। इसमें क्रियारूपों की निष्पत्ति से सम्बन्धित विविध पक्षों पर
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