Book Title: Dhaturatnakar Part 1
Author(s): Lavanyasuri
Publisher: Rashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi

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Page 10
________________ हुआ सोमचन्द्र का हाथ सोने का बन गया था। इस घटना के उपरान्त ही वे 'हेमचन्द्र' के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। 'हेमचन्द्रसूरि' बनने के पश्चात् उन्होंने अपना समग्र जीवन जैनविद्या के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। वे आजीवन ग्रन्थलेखन करते रहे। ____ अनाहिलपाटन (गुजरात) का राजा सिद्धराज जयसिंह तथा बाद में उसका पुत्र राजा कुमारपाल हेमचन्द्र के वैदुष्य से आत्यधिक प्रभावित थे। सच तो यह है कि ये दोनों ही राजा हेमचन्द्र के परम भक्त बन गए थे। सिद्धराज जयसिंह ने उन्हें अपने राजदरबार का सदस्य मनोनीत किया था। कुमारपालचरित के अनुसार सिद्धराज ने हेमचन्द्रसूरि के सम्मान में राजविहार तथा सिद्धविहार नामक दो मन्दिरों का निर्माण करवाया था। जयसिंह और कुमारपाल के संरक्षण में ही हेमचन्द्र ने अनेक ग्रन्थों की रचना की। उनके राज्याश्रय में रहते हुए वे जीवनपर्यन्त जैनमत का प्रचार करते रहे। डॉ० ए.के. मजूमदार का मानना है कि हेमचन्द्र की प्रेरणा से ही कुमारपाल ने अपने राज्य में मद्यपान, द्यूतक्रीडा तथा जीवहत्या जैसी बुराईयों को दूर किया था। हेमचन्द्र की मृत्यु सन् ११७२ में हुई थी। मृत्यु के समय उनकी आयु चौरासी वर्ष की थी। ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि उनके स्वर्गस्थ होने के छह मास पश्चात् कुमारपाल की मृत्यु हुई थी। परम्परा के अनुसार उनके शरीर के भस्म को इतने लोगों ने अपने मस्तक पर लगाया कि उनके अन्त्येष्टिस्थल में एक महाखड्ड हो गया। यह महाखड्ड बाद में हेमचन्द्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आचार्य हेमचन्द्र की समाधि शत्रुञ्जय पर्वत पर स्थित मानी जाती है। हेमचन्द्र का कृतित्व ___ जैसा कि पिछली पङ्क्तियों में कहा गया, हेमचन्द्रसूरि विविध विद्याओं और उनकी विविध विधाओं में पारङ्गत एक मनीषी आचार्य थे। उनका व्यक्तित्व असाधारण था। पाश्चात्य विद्वानों ने उन्हें 'ज्ञान का सागर' कहा है। उनका कृतित्व अभूतपूर्व रहा है। उन्होंने व्याकरण के साथ ही छन्द, न्याय और धर्मशास्त्र जैसे विविध विषयों पर अनेक ग्रन्थों की रचना की है। उनकी प्रत्येक रचना में नया चिन्तन, नयी शैली और नया दृष्टिकोण है। डॉ० मुसलगांवकर के अनुसार 'संस्कृत साहित्य और विक्रमादित्य के इतिहास में जो स्थान कालिदास का है, श्रीहर्ष के दरबार में जो स्थान बाणभट्ट का है, प्रायः वही स्थान बारहवीं शताब्दी में चालूक्यवंशी गुर्जरनरेश सिद्धराज जयसिंह के इतिहास में हेमचन्द्र का है। उनके द्वारा लिखित अनेक ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं हैं। आचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित ग्रन्थों की सूची निम्न है१. अभिधानचिन्तामणि २. अभिधानचूडामणि ३. छन्दोऽनुशासन ४. छन्दोऽनुशासनवृत्ति ५. नाममाला ६. नाममालाशेष ७. लिंगानुशासन ८. व्याश्रयमहाकाव्य ९. शेषसंग्रह १०. शेषसंग्रहसारोद्धार ११. सिद्धहैमशब्दानुशासन १२. विभ्रमसूत्र १३. बालभाष्यव्याकरणसूत्रवृत्ति १४. बालाबालसूत्रबृहद्वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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