Book Title: Dharmsangraha Author(s): Manvijayji, Yashovijay Upadhyay, Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund View full book textPage 9
________________ Jain Education In ३९ संसक्तनिर्युक्तिः ७६ ॥ ४-० कल्पवृहद्वाष्यम् ७९-१३२-१४० ।। ३२-३५-५१-५७-७१११३-१३९ मा १४५-१४८ (२) १६८-१७५ ४१. पिंडनिर्युक्तिः ४९॥ ४२ प्रवचनसारोद्धारः १९-१२५-१८५-२१३ ॥ ११५ ४३ ओघनिर्युक्तिवृत्तिः ८० २३ ( २ ) २९-३४-४२-४९-५३-५२५.३-५२-५५-५७-५८-६०६१-६२ (२) ७१-७२ (२) १०५३०७ (२) १०८ (२) १०९ - १४२-१४८ ४४ प्रतिक्रमणसूत्रचूर्णिः ९१ - [ वृत्ति: ] १११ ४५ दिनकृत्यम् ८७-१२३-१२४-१२६-१२८-१२४-१३७ १४१-१६६-१६७-१४३ (२) १४९-१९५-२०३-२०४ २०६-२०७ (२) २३६. (२) २३७ ४६ समवायांगवृत्तिः ८७ ॥ ४५ श्रावकप्रज्ञप्तिवृत्तिः ८८-१६९।। ४८ विपाकश्रुतम् ९४म ४९ उमास्वातिवाचकविरचितश्रावकप्रज्ञप्तिः ९५ ।। ५० उपासकदृशाः ९६ ॥ ५१ अनेकार्थसंग्रहः ११६-११७॥ ५२ यतिदिनचर्या १२३-१८४-२१२-२१६।२१-२२- (३) २७ (३) २९-३०-३१-३३ (३) ३८-४६-४९-५२- (२) ५४-५६(२) ५७-६०-६१-६२-७२-७३ (२) १०४ (२) १०५ ५३ प्रतिष्ठापद्धति: १२३॥ ५४ ध्यानशतकम् १२३ ॥ ५५ महानिशीथम् १२४-१४१ (२) २३८॥ १६-१६३-१६६ ५६ व्यवहारशास्त्रम् १२६ ॥ ५७ विवेकविलासः १२६ ॥ ५८ नीतिशास्त्रम् १२७-२०७॥ ५९ अष्टकम् १२७॥ For Private & Personal Use Only v.jainelibrary.orgPage Navigation
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