Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 10
________________ धर्मः / नियमः संयमश्चैवमादयो दृष्टव्याः, शब्दा ध्वनयस्तुल्यार्थवाचका एकार्थवाचका इति. इह च कथं. | चिनेदेऽपि तुल्यार्थत्वेन विवदितत्वान्न पर्यनुयोगः कर्तव्य इति श्लोकार्थः. अधर्मो धर्मविपदस्तस्य व्याख्यानं पूर्ववदिपदात्वेनैव कर्तव्यं. किल्विषमित्यधर्महेतुकत्वादतीवनिंद्यं कर्म अधर्मशब्दाभिधायि नवतीति सर्वत्र योज्यं. पापमिति जीवम्वरूपपांशनान्मलिनकारित्वात् पापं पापकर्मप्रकृतयस्ताश्चे. माः-नाणंतरायदसगं / दसण नव मोहपयमिब्बीसं / नामस्स य चनतीसं / तिएहं एकेकपावान // 1 // मसुयनहीमणपङा-वाण तह केवलस्स यावरणं // नाणावरणं कम्मं / पंचविहं होश एवं तु // 2 // दाणलाजन्नोगो-वजोगविरयाण विग्घसंजणणं // तेणंतरायकम्मं / पं. चविहं वंनियं समए // 3 // चखवू अचख्खू नही / वरकेवलदसणाण यावरणं // चनरो पंच य निदा / दंसण जवर्जग विरघबा // 4 // निदा निदा निदा / पयला अन्ना न पयलपयलत्ति // थीपछी य तहेवं / दंसणावरणं भवे नवदा // 5 // मिबत्तमोहणीयं / सोलसभेयं कसायमोहः णीयं // कोहाईण चनएहं-पंताश चनविहत्तणन // 6 // श्खीपुरिसनपुंसग-वेया हासो य रय अरश् य / / सोगो नयं दुगंबत्ति / नवविहं श्यरमोहणियं / / 7 / / मोहब्बीस एसा / एसा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun AIDS காவலனான்னா நாயகா

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