Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ ___ धर्मः | दिपरिबदः // 2 // अंतरंगविषां मांद्य-मौदार्य पापन्नीरुता // सुनीतौ प्रीतिरित्याद्या / बहवो धा, | महेतवः // 3 // कुदेशः कुत्सितो वासः / कुजातिः कुत्सिता गतिः // कुशास्त्राणि कुमित्राणि / कुकलत्रादिपरिबदः // 4 // कुश्रुतिः कुमतिश्चैव / कुविद्या कुत्सितो गुरुः / अत्यंतमुत्कटो रागों। हेषो मोहश्च कुग्रहः // 5 // महारंनो महादंगो / महालोनो महामदः / कुनीतौ प्रीतिरित्याद्या / बहवः पापहेतवः // 6 // व्याख्या-मानुष्यं मानुषत्वं धर्मस्य- बाह्यो हेतुर्नवतीति सर्वत्र क्रिया: योगः कर्तव्यः. श्दं चातीवदुर्लगत्वेन संपूर्णधर्मकर्मकारणत्वेन च धर्मप्राप्तौ बाह्यहेतुत्वेन प्रथममुपन्यस्तमिति, दुर्लजत्वं चास्य चुलकादिदृष्टां तैविनीयं, ते चामी-चुल्लग 1 पासग 2 धन्ने 3 / जूए 4 रयणे य 5 सुमिण 6 चक्के य 7 // चम्म 7 जुगे ए परमाणू 10 / दस दिलंता मणुयलंने // 1 // एतत्कथानकानि पुनरतिक्षुमत्वान्न लिख्यतेऽस्मानिः, आवश्यकादिन्य एवावसेयानि. तथा शोजनो देश शति, शोचनः प्रधानो देशो जनपद थार्यदेश इत्यर्थः, सोऽपि धर्मस्य बाह्यो हेतुरिति, स च शोननो देशः सार्धपं वविंशतिजनपदात्मको यथा रायगिहमगह 1 चंपा। अंगा 1 तह तामलित्ति वंगा य 3 // कंचणपुरं कलिंगा / / वा. Jun Gun Aaradhak Trust . PP.AC.GunratnasuriM.S.

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